आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि सीमा अधिनियम, 1963, चिट फंड अधिनियम, 1982 की धारा 70 के तहत दायर अपील पर लागू नहीं होता। न्यायमूर्ति रवि नाथ तिलहरी ने यह फैसला आत्मकुरु निर्मलम्मा द्वारा आंध्र प्रदेश राज्य, राजस्व विभाग (पंजीकरण और स्टाम्प) और अन्य के खिलाफ दायर रिट याचिका संख्या 28392/2024 पर सुनाया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला मेसर्स मार्गदर्शी चिट फंड प्राइवेट लिमिटेड से जुड़े विवाद से उपजा है, जिसने याचिकाकर्ता सहित छह व्यक्तियों के खिलाफ 17,67,275 रुपये की वसूली के लिए मध्यस्थता कार्यवाही शुरू की थी। विवाद का निपटारा तेनाली के चिट्स के डिप्टी रजिस्ट्रार ने किया, जिन्होंने 31 अक्टूबर, 2017 को एक निर्णय पारित किया, जिसमें 15,63,040 रुपये की मूल राशि पर 18% प्रति वर्ष ब्याज के साथ वसूली का निर्देश दिया गया।
याचिकाकर्ता, जो गारंटरों में से एक थी, ने दावा किया कि उसे विवाद की कार्यवाही के बारे में कोई नोटिस नहीं मिला था और उसे केवल तब पुरस्कार के बारे में पता चला जब 2024 में प्रिंसिपल जूनियर सिविल जज, नेल्लोर के समक्ष ई.पी. संख्या 245/2019 में निष्पादन कार्यवाही शुरू की गई। इसके बाद, उसने जिला न्यायाधीश, नेल्लोर के समक्ष एक मध्यस्थता मूल याचिका (एओपी) दायर की, जिसे अनुरक्षणीय नहीं मानते हुए वापस कर दिया गया। इसके बाद उसने चिट फंड अधिनियम की धारा 70 के तहत राज्य सरकार के समक्ष अपील दायर की, साथ ही अपील दायर करने में हुई देरी को माफ करने के लिए एक आवेदन भी दिया। अपीलीय प्राधिकारी ने अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह वैधानिक दो महीने की अवधि से परे दायर किए जाने के कारण सीमा द्वारा वर्जित है।
शामिल कानूनी मुद्दे
हाईकोर्ट के समक्ष मुख्य प्रश्न यह था:
1. क्या चिट फंड अधिनियम की धारा 70 के तहत अपीलीय प्राधिकारी के पास अपील दायर करने में देरी को माफ करने का अधिकार है।
2. क्या सीमा अधिनियम, 1963 के प्रावधान चिट फंड अधिनियम के तहत अपील पर लागू होते हैं।
याचिकाकर्ता के वकील श्री मुत्याला सोभनद्रि नायडू ने तर्क दिया कि सीमा अधिनियम की धारा 29(2) अपने प्रावधानों को चिट फंड अधिनियम के तहत अपील पर लागू करती है और अपीलीय प्राधिकारी को देरी की माफी के अनुरोध पर विचार करना चाहिए था। प्रतिवादी के वकील, राजस्व के सहायक सरकारी वकील (एजीपी) श्री दिलीप नायक ने तर्क दिया कि चिट फंड अधिनियम की धारा 70 में देरी के लिए माफी का प्रावधान नहीं है, और इसलिए, अपील को समय-सीमा समाप्त होने के कारण सही तरीके से खारिज कर दिया गया।
न्यायालय का निर्णय
न्यायमूर्ति रवि नाथ तिलहरी ने अपील को खारिज करने के फैसले को बरकरार रखा, यह फैसला सुनाया कि चिट फंड अधिनियम धारा 70 के तहत अपील के लिए सीमा अधिनियम को शामिल नहीं करता है। न्यायालय ने टिप्पणी की:
“चिट फंड अधिनियम की धारा 70 दो महीने की सीमा अवधि निर्धारित करती है, लेकिन अपीलीय प्राधिकारी को देरी को माफ करने का कोई अधिकार नहीं देती है। अन्य क़ानूनों, जैसे कि SARFAESI अधिनियम और RDDB अधिनियम के विपरीत, जो स्पष्ट रूप से माफी का प्रावधान करते हैं, चिट फंड अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिससे सीमा अधिनियम की धारा 29(2) की प्रयोज्यता समाप्त हो जाती है।”
इस निर्णय में बालेश्वर दयाल जायसवाल बनाम बैंक ऑफ इंडिया और मुकरी गोपालन बनाम चेप्पिलत पुथनपुरायिल अबूबकर सहित सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का भी संदर्भ दिया गया है, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि एक क़ानून की योजना यह निर्धारित करती है कि सीमा अधिनियम लागू होता है या नहीं। न्यायालय ने चिट फंड अधिनियम को अन्य वित्तीय क़ानूनों से अलग करते हुए कहा कि जहाँ विधानमंडल देरी की माफ़ी देने का इरादा रखता है, वहाँ उसने स्पष्ट रूप से इसके लिए प्रावधान किया है।
न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला:
“न तो सीमा अधिनियम के प्रावधान और न ही देरी की माफ़ी की शक्ति चिट फंड अधिनियम की धारा 70 के तहत लागू होती है। विधायी इरादा स्पष्ट है कि अपील निर्धारित अवधि के भीतर दायर की जानी चाहिए, और कोई भी देरी उन्हें गैर-रखरखाव योग्य बनाती है।”