दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में दिल्ली सरकार के अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक समुदायों के कल्याण विभाग द्वारा जय भीम मुख्यमंत्री प्रतिभा विकास योजना के तहत कोचिंग संस्थानों को भुगतान से संबंधित मुद्दों को हल करने के प्रयासों को स्वीकार किया। न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने आदेश दिया कि प्रत्येक याचिकाकर्ता कोचिंग संस्थान को विभाग के विशेष सचिव द्वारा सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए, जिसमें पूरी तरह से सत्यापन के बाद धनराशि जारी करने पर निर्णय लिया जाना चाहिए।
न्यायालय का यह निर्णय विभिन्न कोचिंग संस्थानों की याचिकाओं की एक श्रृंखला का निपटारा करते हुए आया, जिसमें सितंबर 2019 से सरकार की योजना के कार्यान्वयन के लिए निर्देश मांगे गए थे। इस योजना का उद्देश्य निर्दिष्ट श्रेणियों के आर्थिक रूप से वंचित छात्रों को गुणवत्तापूर्ण कोचिंग प्रदान करना है, जिससे वे सरकारी सेवा पदों के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग ले सकें।
2019 के दिशा-निर्देशों के तहत, दिल्ली सरकार ने कोचिंग के लिए निश्चित अवधि और शुल्क सीमा निर्धारित की, साथ ही संस्थानों के साथ समझौता ज्ञापन (एमओए) पर हस्ताक्षर किए। इन समझौतों के अनुसार, संस्थानों को पाठ्यक्रम शुल्क का 50% और छात्र नामांकन तथा संबंधित विवरण प्रस्तुत करने पर पूर्ण वजीफा की प्रारंभिक किस्त प्राप्त करनी थी। दूसरी किस्त जारी करना संस्थानों द्वारा आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध कराने पर निर्भर था।
हालांकि, कोचिंग सेंटरों ने दावा किया कि दिल्ली सरकार ने समझौते के अनुसार भुगतान की पहली किस्त भी नहीं दी है। जवाब में, अदालत ने निर्देश दिया है कि समीक्षा के लिए पांच दिनों के भीतर विभाग को संबंधित दस्तावेज उपलब्ध कराए जाएं। प्रत्येक संस्थान के लिए चार सप्ताह के भीतर सुनवाई निर्धारित है, जहां देय भुगतान के संबंध में निर्णय लिए जाएंगे।
इसके अलावा, अदालत ने कहा कि यदि कोई संस्थान भुगतान का हकदार नहीं पाया जाता है, या यदि कोई कटौती आवश्यक है, तो ऐसे निर्णयों के कारणों को स्पष्ट करते हुए एक विस्तृत आदेश जारी किया जाना चाहिए। अदालत ने यह सुनिश्चित करने के लिए इन कदमों के महत्व पर जोर दिया कि जय भीम मुख्यमंत्री प्रतिभा विकास योजना के उद्देश्यों से समझौता न हो।