बिलासपुर, छत्तीसगढ़ की एक महिला द्वारा अपने सैकड़ों किलोमीटर दूर पुणे में रहने वाले देवर विशाल और उनकी पत्नी पर लगाए गए घरेलू हिंसा के आरोपों को अदालत ने खारिज कर दिया है। अदालत ने मामले में उनके नाम हटाने के निर्देश दिए हैं, यह कहते हुए कि लगाए गए आरोप भौगोलिक और तथ्यात्मक दृष्टि से उचित नहीं हैं।
यह मामला तब सामने आया जब सिम्स में कार्यरत स्टाफ नर्स और विकास चौरसिया की दूसरी पत्नी जागृति तिवारी ने अपने पति के साथ ही देवर विशाल और उनकी पत्नी पर घरेलू हिंसा का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज करवाई। जागृति ने आरोप लगाया कि पुणे में रहने के बावजूद यह दंपत्ति बिलासपुर में उनके घरेलू विवाद में शामिल था। जागृति ने पहले अपने पूर्व पति से तलाक ले लिया था और उनसे भरण-पोषण भी प्राप्त कर लिया था। उसने अपने दूसरे पति विकास के साथ लगातार विवाद की बात कहते हुए यह शिकायत दर्ज करवाई।
कोर्ट का नोटिस मिलने पर विशाल ने अदालत में आरोपों को चुनौती दी और बताया कि वे दोनों साल में केवल कुछ ही बार बिलासपुर जाते हैं और वह भी केवल पारिवारिक कारणों से, जैसे हाल ही में उनकी मां के निधन के समय। विशाल ने तर्क दिया कि उनकी शिकायत में लगाए गए आरोप बेबुनियाद हैं क्योंकि उनका जागृति से नियमित संपर्क नहीं था और उनकी भौगोलिक दूरी भी काफी अधिक है।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने प्रस्तुत तर्कों की समीक्षा के बाद यह स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12-2 के तहत ऐसे आरोप तभी टिकाऊ माने जा सकते हैं जब आरोपी और शिकायतकर्ता एक ही साझा गृहस्थी में साथ रहते हों। चूंकि विशाल और उनकी पत्नी पुणे में स्थायी रूप से निवास करते हैं और उनके पास महाराष्ट्र में पंजीकृत बिजली बिल और आधार कार्ड जैसे प्रमाण मौजूद हैं, कोर्ट ने पाया कि इन आरोपों का कोई ठोस आधार नहीं है।
कोर्ट के इस निर्णय ने न केवल विशाल और उनकी पत्नी को बेवजह कानूनी परेशानियों से राहत दी है, बल्कि यह भी स्पष्ट किया है कि घरेलू विवादों में लगाए गए आरोपों की सत्यता और भौगोलिक समीपता जैसे कारकों को गंभीरता से परखा जाना चाहिए।