पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में एक जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया, जिसमें सभी महिलाओं, चाहे उनकी वैवाहिक स्थिति कुछ भी हो, के लिए करवा चौथ मनाने को अनिवार्य बनाने की मांग की गई थी।
मुख्य न्यायाधीश शील नागु और न्यायमूर्ति सुमीत गोयल की खंडपीठ ने इस याचिका को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर प्रतीकात्मक ₹1,000 का जुर्माना लगाया, जिसे पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ के गरीब रोगी कल्याण कोष में जमा करने का निर्देश दिया गया।
हाईकोर्ट ने अपने 22 जनवरी के आदेश में कहा कि यह विषय विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है और न्यायालय इसमें हस्तक्षेप करने के पक्ष में नहीं है।
याचिकाकर्ता नरेंद्र कुमार मल्होत्रा ने तर्क दिया कि कुछ वर्गों की महिलाओं, विशेष रूप से विधवाओं, को करवा चौथ मनाने की अनुमति नहीं दी जाती। परंपरागत रूप से, करवा चौथ विवाहित हिंदू महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए उपवास रखने का त्योहार है। याचिकाकर्ता ने कहा कि सभी महिलाओं—चाहे वे विधवा, तलाकशुदा, अलग रह रही हों या लिव-इन रिलेशनशिप में हों—को इस त्योहार में भाग लेने की अनुमति और प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
मल्होत्रा ने करवा चौथ को महिलाओं का सार्वभौमिक त्योहार घोषित करने का प्रस्ताव भी रखा और इसे “मां गौरा उत्सव” या “मां पार्वती उत्सव” के रूप में नामित करने की मांग की। उन्होंने यह भी कहा कि कानून बनाकर यह सुनिश्चित किया जाए कि किसी भी महिला को इस त्योहार में भाग लेने से रोका न जाए, और ऐसा करने वालों को दंडित किया जाए।
हालांकि, अदालत ने इस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। इसके बाद याचिकाकर्ता के वकील ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया, लेकिन ₹1,000 का जुर्माना लगाते हुए।