बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) की अनुशासन समिति ने वकील नितिन कुमार सक्सेना के खिलाफ उत्तर प्रदेश बार काउंसिल द्वारा जारी पांच साल के निलंबन आदेश को रद्द कर दिया है। यह याचिका सक्सेना द्वारा दायर की गई थी, जिसमें 2023 के निलंबन आदेश को प्रक्रियात्मक त्रुटियों और अधिकार क्षेत्र से बाहर होने का हवाला देते हुए चुनौती दी गई थी।
मामले का विवरण
मामला (B.C.I. Tr. Case No. 59/2024) शिकायतकर्ता श्रीमती गीता साहू द्वारा लगाए गए आरोपों से जुड़ा है। उन्होंने सक्सेना पर धोखाधड़ी, पारिवारिक मामलों में हस्तक्षेप और एक वकील के रूप में अपने पद का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया। हालांकि, ये कथित घटनाएं 2015 और 2018 के बीच की हैं, जबकि सक्सेना 2020 में एक वकील के रूप में नामांकित हुए थे।
समिति की प्रमुख टिप्पणियां
अनुशासन समिति, जिसकी अध्यक्षता श्री रामी रेड्डी ने की और सदस्य डॉ. अमित के. वैद और श्री राकेश कुमार आचार्य शामिल थे, ने मामले में कई असंगतियों को उजागर किया:
- अधिकार क्षेत्र की सीमाएं – उत्तर प्रदेश बार काउंसिल को सक्सेना के नामांकन से पहले किए गए कथित कार्यों की जांच करने का अधिकार नहीं है।
- शिकायत दर्ज करने में देरी – 2022 में दर्ज की गई शिकायत को विलंबित माना गया और इसमें कथित अवधि के दौरान पुलिस रिपोर्ट या पूर्व शिकायतों का कोई प्रमाण नहीं था।
- अपर्याप्त साक्ष्य – शिकायतकर्ता द्वारा प्रस्तुत बैंक विवरण उनके आरोपों से मेल नहीं खाते और सक्सेना पर वित्तीय दुर्व्यवहार के दावे का समर्थन नहीं करते।
समिति का निर्णय
बीसीआई ने निलंबन आदेश को रद्द कर दिया और इसे पारित करते समय उत्तर प्रदेश बार काउंसिल द्वारा की गई बड़ी गलतियों को रेखांकित किया। समिति ने निष्कर्ष निकाला कि आरोप अधिकार क्षेत्र के दायरे से बाहर थे और विश्वसनीय साक्ष्य की कमी थी।
मामले को उत्तर प्रदेश बार काउंसिल को रिकॉर्ड वापस करने के निर्देश के साथ भेज दिया गया है।