आज एक महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें बार काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन मनन कुमार मिश्रा को उनकी राज्यसभा सदस्यता से अयोग्य ठहराने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया गया था। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने फैसला सुनाया कि हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए कोई ठोस आधार नहीं है, हालांकि उन्होंने याचिकाकर्ता पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाने को खारिज कर दिया।
याचिकाकर्ता अमित कुमार दिवाकर, जो एक वकील हैं, ने तर्क दिया था कि मिश्रा की बीसीआई चेयरमैन और राज्यसभा सदस्य के रूप में समवर्ती भूमिकाएं कानूनी रूप से असंगत हैं। हालांकि, हाई कोर्ट ने पहले इन दावों को खारिज कर दिया था, यह देखते हुए कि दिवाकर, जो न तो मतदाता हैं और न ही संबंधित चुनाव में उम्मीदवार हैं, उनके पास चुनाव याचिका दायर करने के लिए आवश्यक आधार नहीं है। कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि संविधान के अनुच्छेद 102(1) के तहत अयोग्य ठहराए जाने के लिए औपचारिक जांच की आवश्यकता होती है और यह केवल आरोपों पर आधारित नहीं हो सकता।
हाईकोर्ट ने दिवाकर पर कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के लिए वित्तीय जुर्माना लगाया था, जिसका उद्देश्य चुनाव परिणामों को चुनौती देने के लिए स्थापित प्रक्रियाओं को दरकिनार करना था। आज, सर्वोच्च न्यायालय ने विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) को खारिज करते हुए दिवाकर को इस वित्तीय बोझ से मुक्त करने का फैसला किया, मामले के विवरण का हवाला देते हुए और उम्मीद जताई कि इस तरह के तुच्छ मुकदमे फिर से नहीं होंगे।
एनडीए के बैनर तले बिहार से राज्यसभा के लिए निर्विरोध चुने गए मनन कुमार मिश्रा को उनकी दोहरी भूमिकाओं के लिए जांच का सामना करना पड़ा है, लेकिन आज के फैसले के साथ, उनकी स्थिति सुरक्षित है।