अचानक हुआ झगड़ा, पूर्व नियोजित हत्या नहीं: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हत्या मामले में दोषियों की सजा घटाई  

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में 2019 के हत्या मामले में दोषी ठहराए गए तीन व्यक्तियों और एक किशोर की सजा को संशोधित कर दिया। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रवींद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने हत्या के आरोप (भारतीय दंड संहिता की धारा 302) को घटाकर गैर इरादतन हत्या (आईपीसी की धारा 304 भाग 1) में बदल दिया। अदालत ने यह निर्णय झगड़े के अचानक होने और पूर्व नियोजन के अभाव को देखते हुए लिया।  

मामले का विवरण  

आरोपियों, छोवराम ध्रुव (40), लक्ष्मण ध्रुव (19), भीम निषाद (20) और एक किशोर पर राजेंद्र सेन की हत्या का आरोप था। घटना 9 जनवरी 2019 को धमतरी जिले के मगरलोड क्षेत्र में अवैध शराब बिक्री को लेकर हुए विवाद के बाद हुई थी।  

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गवाहों के अनुसार, विवाद के दौरान किशोर ने पीड़ित की गर्दन पर चाकू से वार किया, जिससे अत्यधिक रक्तस्राव के कारण उनकी मृत्यु हो गई। ट्रायल कोर्ट ने तीनों वयस्क आरोपियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, जबकि किशोर को बाल न्यायालय ने किशोर न्याय अधिनियम के तहत उम्रकैद दी थी।  

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कानूनी मुद्दे  

हाईकोर्ट ने मामले में निम्नलिखित कानूनी मुद्दों पर विचार किया:  

1. पूर्व नियोजन और इरादा: क्या आरोपियों के कार्य हत्या के लिए पूर्व नियोजित थे या यह अचानक और स्वतःस्फूर्त झगड़े का परिणाम था।  

2. धारा 300 के अपवाद 4 की प्रासंगिकता: इस प्रावधान के तहत, यदि घटना अचानक हुई हो, पूर्व नियोजित न हो, और क्रूरता के बिना हो, तो हत्या के आरोप को गैर इरादतन हत्या में परिवर्तित किया जा सकता है।  

3. किशोर न्याय अधिनियम की भूमिका: अदालत ने किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के तहत सजा के सिद्धांतों की समीक्षा की, विशेष रूप से किशोर आरोपी के संबंध में।  

अदालत के अवलोकन और निर्णय  

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श्री शोभित कोस्टा (अपीलकर्ताओं की ओर से) और राज्य के उप महाधिवक्ता श्री शशांक ठाकुर की दलीलों और प्रस्तुत साक्ष्यों की समीक्षा के बाद, हाईकोर्ट ने पाया कि यह झगड़ा अचानक हुआ था और आरोपी क्रूरता से कार्य नहीं कर रहे थे।  

खंडपीठ ने सुखबीर सिंह बनाम हरियाणा राज्य (2002) और गुरमुख सिंह बनाम हरियाणा राज्य (2009) जैसे कानूनी मिसालों का हवाला देते हुए कहा: 

“यह घटना अचानक और बिना पूर्व नियोजन की होनी चाहिए और आरोपी ने अनुचित लाभ नहीं उठाया हो या क्रूर या असामान्य ढंग से कार्य नहीं किया हो।”  

जजों ने पाया कि किशोर ने गरमागरम बहस के दौरान एक बार चाकू से वार किया, जबकि अन्य आरोपी निहत्थे थे और उन्होंने क्रूरता का परिचय नहीं दिया। इस आधार पर, अदालत ने कहा कि आरोपियों की कार्रवाई धारा 300 के अपवाद 4 के दायरे में आती है।  

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न्यायालय ने दोषियों की सजा को संशोधित कर गैर इरादतन हत्या (धारा 304 भाग 1) में बदल दिया। उन्हें छह वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई, जिसमें जेल में बिताई गई अवधि को शामिल किया गया। किशोर की सजा को भी घटाकर किशोर न्याय अधिनियम के तहत तय की गई शर्तों के अनुसार पूरा किया जाएगा।  

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