एक महत्वपूर्ण फैसले में, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने चिकित्सा लापरवाही से संबंधित कानून को स्पष्ट करते हुए कहा कि नसबंदी प्रक्रिया की विफलता, अपने आप में, चिकित्सा लापरवाही नहीं मानी जाती है। RSA-4214-2002 (O&M) में मामले की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल ने एक अपीलीय अदालत के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें कथित लापरवाही के आधार पर मुआवज़ा देने का आदेश दिया गया था।
पृष्ठभूमि
प्रतिवादी, एक महिला जिसने नसबंदी करवाई थी, प्रक्रिया के बाद गर्भवती हो गई और उसने 18% वार्षिक ब्याज के साथ ₹90,000 के मुआवजे की मांग करते हुए मुकदमा दायर किया। जबकि ट्रायल कोर्ट ने सबूतों के अभाव में उसके दावे को खारिज कर दिया, प्रथम अपीलीय अदालत ने इस फैसले को पलटते हुए 6% ब्याज के साथ ₹30,000 का हर्जाना देने का आदेश दिया। पंजाब राज्य ने वरिष्ठ उप महाधिवक्ता सलिल सबलोक के माध्यम से प्रथम अपीलीय न्यायालय के निर्णय को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में दूसरी अपील दायर की।
प्रतिवादी, जिसका प्रतिनिधित्व प्रदीप गोयल की ओर से अधिवक्ता सुश्री सिमरन ने किया, ने नसबंदी प्रक्रिया की विफलता को साक्ष्य के रूप में उद्धृत करते हुए, शल्य चिकित्सक द्वारा लापरवाही का आरोप लगाया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति क्षेत्रपाल ने चिकित्सकीय लापरवाही को नियंत्रित करने वाले तथ्यों और कानूनी सिद्धांतों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि लापरवाही को केवल इसलिए नहीं माना जा सकता क्योंकि चिकित्सकीय प्रक्रिया इच्छित परिणाम प्राप्त करने में विफल रही।
1. सबूत का बोझ:
न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि कथित चिकित्सकीय लापरवाही के मामलों में सबूत का बोझ पूरी तरह से वादी पर होता है। लापरवाही को स्थापित करने के लिए, जब आवश्यक हो तो विशेषज्ञ की गवाही सहित ठोस सबूत प्रदान करना वादी की जिम्मेदारी है। इस मामले में प्रतिवादी कोई विशेषज्ञ राय या सबूत पेश करने में विफल रहा, जो यह सुझाव दे कि सर्जन अक्षम था या प्रक्रिया लापरवाही से की गई थी।
2. सहमति और जोखिम प्रकटीकरण:
अदालत ने पाया कि प्रतिवादी ने प्रक्रिया से पहले सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें विफलता की संभावना को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया था। इस दस्तावेज़ ने स्पष्ट किया कि नसबंदी की सफलता के बारे में कोई आश्वासन नहीं दिया गया था। न्यायमूर्ति क्षेत्रपाल ने कहा:
“केवल इसलिए चिकित्सा लापरवाही नहीं मानी जा सकती क्योंकि शल्य प्रक्रिया वांछित परिणाम प्राप्त करने में विफल रही है। ज्ञात जोखिमों को स्वीकार करने वाले सहमति पत्र इस तरह के मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।”
3. लापरवाही की धारणा:
प्रथम अपीलीय न्यायालय ने ऑपरेशन की विफलता के कारण लापरवाही का अनुमान लगाया था, लेकिन दोष साबित करने वाले साक्ष्य की अनुपस्थिति पर विचार करने में विफल रहा। हाईकोर्ट ने इस बात पर प्रकाश डाला कि चिकित्सा लापरवाही अनुमान का विषय नहीं है; इसके लिए स्पष्ट, सकारात्मक सबूत की आवश्यकता होती है। न्यायमूर्ति क्षेत्रपाल ने जोर दिया:
“यह सुझाव देने वाले साक्ष्य के अभाव में कि सर्जन सक्षम नहीं था या प्रक्रिया लापरवाही से की गई थी, चिकित्सा व्यवसायी पर दायित्व नहीं लगाया जा सकता।”
4. सर्वोच्च न्यायालय के उदाहरण की प्रासंगिकता:
अदालत ने पंजाब राज्य बनाम शिव राम (2005) में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया था कि जब तक लापरवाही साबित न हो जाए, केवल नसबंदी की विफलता ही मुआवजे को उचित नहीं ठहराती। न्यायमूर्ति क्षेत्रपाल ने इस सिद्धांत को दोहराया, जिसमें कहा गया कि लापरवाही के सबूत के बिना हर असफल ऑपरेशन के लिए डॉक्टरों को जिम्मेदार ठहराना एक खतरनाक मिसाल कायम करेगा।
हाईकोर्ट का निर्णय
साक्ष्य और कानूनी सिद्धांतों की समीक्षा करने के बाद, हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि प्रथम अपीलीय न्यायालय का निर्णय त्रुटिपूर्ण था। इसने प्रतिवादी के मुआवजे के दावे को खारिज करते हुए ट्रायल कोर्ट के निर्णय को बहाल कर दिया। निर्णय में कहा गया:
“प्रथम अपीलीय न्यायालय द्वारा बिना किसी ठोस सबूत के लापरवाही की धारणा अनुचित और कानूनी रूप से अस्थिर थी। केवल अनुमानों के आधार पर क्षतिपूर्ति के लिए मुकदमा चलाना स्वीकार्य नहीं है।”
न्यायालय ने आगे टिप्पणी की:
“केवल शल्य चिकित्सा प्रक्रिया की विफलता के कारण लापरवाही मान लेना चिकित्सा न्यायशास्त्र और न्याय के सिद्धांतों को कमजोर करता है।”
निर्णय से मुख्य निष्कर्ष
1. साक्ष्य-आधारित निर्णय: निर्णय इस बात पर बल देता है कि कथित चिकित्सा लापरवाही के मामलों में न्यायालयों को अनुमानों पर नहीं, बल्कि ठोस साक्ष्यों पर भरोसा करना चाहिए।
2. सहमति प्रपत्रों का महत्व: हस्ताक्षरित सहमति प्रपत्र जो जोखिमों का खुलासा करते हैं, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को अनुचित दावों से बचाते हैं जब प्रक्रियाएं अंतर्निहित जोखिमों के कारण विफल हो जाती हैं।
3. चिकित्सा पेशेवरों की सुरक्षा: यह निर्णय चिकित्सा व्यवसायियों को आधारहीन देयता से बचाता है, जबकि यह सुनिश्चित करता है कि लापरवाही के वास्तविक मामलों को मजबूत साक्ष्य के आधार पर संबोधित किया जाए।