राजस्थान हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि प्रतिकूल पुलिस सत्यापन रिपोर्ट, अपने आप में, किसी भारतीय नागरिक को पासपोर्ट के कानूनी अधिकार से वंचित करने का आधार नहीं हो सकती। सावित्री शर्मा बनाम भारत संघ एवं अन्य (एस.बी. सिविल रिट याचिका संख्या 2602/2024) मामले की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति अनूप कुमार ढांड ने अधिकारियों को याचिकाकर्ता के पासपोर्ट को आठ सप्ताह के भीतर नवीनीकृत करने का निर्देश दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता सुश्री सावित्री शर्मा ने अपने समाप्त हो चुके पासपोर्ट को नवीनीकृत करने के लिए अपने आवेदन को क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय द्वारा अस्वीकार किए जाने के बाद न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। अस्वीकृति एक पुलिस रिपोर्ट पर आधारित थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि उनकी राष्ट्रीयता “संदिग्ध” है और संभवतः नेपाली है, जबकि उनके पास जन्म प्रमाण पत्र, आधार कार्ड और पैन कार्ड सहित भारतीय नागरिकता साबित करने वाले कई दस्तावेज मौजूद हैं।
1990 में दिल्ली में जन्मी सुश्री शर्मा ने नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 3(1)(बी) के तहत अपनी नागरिकता साबित करने के लिए अपने शैक्षिक रिकॉर्ड, विवाह प्रमाणपत्र और पारिवारिक संबंध प्रस्तुत किए। अधिवक्ता श्री राकेश चंदेल और श्री अभिनव भंडारी द्वारा प्रस्तुत, उन्होंने तर्क दिया कि इनकार ने उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है।
भारत संघ, जिसका प्रतिनिधित्व सुश्री मंजीत कौर ने किया, ने पुलिस द्वारा प्रस्तुत प्रतिकूल सत्यापन रिपोर्ट का हवाला देते हुए निर्णय का बचाव किया।
कानूनी मुद्दे
इस मामले ने कई महत्वपूर्ण कानूनी सवाल उठाए:
1. पासपोर्ट आवेदनों में पुलिस सत्यापन रिपोर्ट की वैधता:
– क्या एक प्रतिकूल पुलिस रिपोर्ट नागरिकता के वैध दस्तावेजी सबूत को रद्द कर सकती है?
– अदालत ने पासपोर्ट अधिनियम, 1967 की धारा 6 के दायरे और सीमाओं का मूल्यांकन किया, जो पासपोर्ट के इनकार के लिए विशिष्ट आधारों को रेखांकित करता है।
2. विदेश यात्रा का मौलिक अधिकार:
– क्या विदेश यात्रा का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा है?
– न्यायालय ने इस बात की पुष्टि करने के लिए उदाहरणों की जांच की कि यात्रा का अधिकार, हालांकि स्पष्ट रूप से नहीं कहा गया है, व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अभिन्न अंग है।
3. नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत नागरिकता:
– क्या याचिकाकर्ता की नागरिकता नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 3(1)(बी) के तहत आवश्यकताओं को पूरा करती है?
– याचिकाकर्ता ने अपनी नागरिकता स्थापित करने के लिए अपने भारतीय जन्म और माता-पिता की वंशावली का सबूत पेश किया, जिसका न्यायालय ने अधिनियम के आलोक में मूल्यांकन किया।
4. प्रशासनिक निर्णयों में प्रक्रियात्मक निष्पक्षता की भूमिका:
– क्या अधिकारियों को केवल पुलिस सत्यापन रिपोर्ट पर निर्भर रहना चाहिए, या उन्हें स्वतंत्र निर्णय लेना चाहिए?
– न्यायालय ने पासपोर्ट अधिनियम की धारा 5 और 6 के तहत पासपोर्ट अधिकारियों के प्रक्रियात्मक दायित्वों पर विचार किया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति ढांड ने निर्णय में कई महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ कीं:
1. दस्तावेजी साक्ष्य बनाम पुलिस रिपोर्ट:
– “याचिकाकर्ता भारत में पैदा हुई थी, उसके पास वैध दस्तावेज हैं, और उसकी नागरिकता पर संदेह करने का कोई आधार नहीं है,” न्यायालय ने प्रतिकूल पुलिस रिपोर्ट को अपर्याप्त बताते हुए टिप्पणी की।
2. यात्रा करने का मौलिक अधिकार:
– सतवंत सिंह साहनी बनाम डी. रामरत्नम (1967) और मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978) का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा, “पासपोर्ट को रोकना प्रभावी रूप से किसी व्यक्ति को यात्रा करने के अधिकार से वंचित करता है, जो कानून द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता है।”
3. पासपोर्ट अधिकारियों की भूमिका:
– न्यायमूर्ति ढांड ने स्पष्ट किया, “पासपोर्ट प्राधिकरण को स्वतंत्र रूप से तथ्यों का मूल्यांकन करना चाहिए। बिना किसी सहायक साक्ष्य के केवल एक प्रतिकूल रिपोर्ट नवीनीकरण आवेदन को अस्वीकार करने का औचित्य नहीं देती है।”
4. निष्पक्षता और उचित प्रक्रिया:
– न्यायालय ने अधिकारियों द्वारा वैध और पारदर्शी तरीके से कार्य करने की आवश्यकता पर जोर दिया। न्यायालय ने कहा, “एक प्रतिकूल पुलिस सत्यापन रिपोर्ट किसी नागरिक को पासपोर्ट पाने के उसके कानूनी अधिकार से वंचित नहीं करती है।”
निर्णय
न्यायालय ने सुश्री शर्मा के पासपोर्ट नवीनीकरण आवेदन की अस्वीकृति को रद्द कर दिया और क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय को आठ सप्ताह के भीतर नवीनीकरण की प्रक्रिया करने का निर्देश दिया। इसने अधिकारियों को भविष्य में तभी कार्रवाई करने की अनुमति दी जब ठोस सबूत सामने आए, जिससे प्रक्रियात्मक निष्पक्षता सुनिश्चित हुई।