भरण-पोषण के बदले में महिला को दी गई संपत्ति HSA, 1956 की धारा 14(1) के तहत पूर्ण स्वामित्व में बदल जाती है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर यह दोहराया है कि भरण-पोषण के बदले में महिला को दी गई सम्पत्ति, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (HSA) की धारा 14(1) के तहत, उसकी पूर्ण संपत्ति बन जाती है, जब तक कि स्पष्ट रूप से कोई प्रतिबंध न लगाया गया हो। सिविल अपील संख्या 5389/2012 में दिए गए फैसले में कोर्ट ने अपीलकर्ता-प्रतिवादियों की अपील को खारिज कर दिया, जो कि कल्लाकुरी परिवार के लंबे समय से चले आ रहे संपत्ति विवाद से संबंधित थी।

यह निर्णय जस्टिस सी.टी. रविकुमार और जस्टिस संजय करोल द्वारा दिया गया। इसमें HSA, 1956 की धारा 14(1) के तहत पूर्ण स्वामित्व और धारा 14(2) के तहत सीमित अधिकारों के बीच अंतर को स्पष्ट किया गया।

मामले की पृष्ठभूमि

यह विवाद कल्लाकुरी स्वामी, जो एक ज़मींदार थे, के वारिसों के बीच संपत्ति बंटवारे को लेकर था। 1933 में एक विभाजन विलेख (पार्टिशन डीड) के तहत उनकी दूसरी पत्नी श्रीमती वीरभद्रम्मा को 3.55 एकड़ भूमि पर आजीवन अधिकार दिया गया था। शर्त यह थी कि उनकी मृत्यु के बाद यह भूमि स्वामी के दोनों बेटों—पहली और दूसरी पत्नी से—के बीच बराबर बंट जाएगी।

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1973 में वीरभद्रम्मा की मृत्यु के बाद विवाद तब उत्पन्न हुआ जब उनकी दूसरी पत्नी के वारिसों ने 1968 के वसीयतनामे के आधार पर इस भूमि पर पूर्ण स्वामित्व का दावा किया। पहली पत्नी के वारिसों ने इस दावे को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि विभाजन विलेख ने वीरभद्रम्मा के अधिकार को केवल आजीवन संपत्ति तक सीमित कर दिया था।

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ट्रायल कोर्ट और बाद में आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने पहली पत्नी के वारिसों के पक्ष में फैसला सुनाया, यह मानते हुए कि विभाजन विलेख की भाषा ने वीरभद्रम्मा के अधिकारों को एक जीवनकाल तक सीमित कर दिया और उन्हें पूरी संपत्ति वसीयत के माध्यम से स्थानांतरित करने की अनुमति नहीं दी।

कानूनी मुद्दे

सुप्रीम कोर्ट ने निम्नलिखित कानूनी सवालों पर विचार किया:

  1. क्या हिंदू कानून के तहत भरण-पोषण के बदले महिला को दी गई संपत्ति HSA, 1956 की धारा 14(1) के तहत उसकी पूर्ण संपत्ति बनती है?
  2. क्या विभाजन विलेख की विशेष भाषा उसके स्वामित्व को केवल जीवनकाल तक सीमित करती है और धारा 14(2) लागू होती है?

सुप्रीम कोर्ट के विचार

कोर्ट ने HSA, 1956 की धारा 14 के परिवर्तनकारी प्रावधानों पर जोर दिया, जो हिंदू महिलाओं को संपत्ति स्वामित्व पर लगे प्रतिबंधों से मुक्त करने के लिए बनाए गए थे।

  • धारा 14(1): महिलाओं के पूर्व-स्थापित अधिकारों पर आधारित संपत्ति को पूर्ण स्वामित्व में बदलने का प्रावधान करती है।
  • धारा 14(2): यदि विलेख या दस्तावेज़ में स्पष्ट रूप से अधिकार सीमित किए गए हैं, तो महिला केवल सीमित स्वामित्व रखती है।
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कोर्ट ने वी. तुलसम्मा बनाम वी. शेषा रेड्डी (1977) और गुलवंत कौर बनाम मोहिंदर सिंह (1987) जैसे मामलों के संदर्भ में निम्नलिखित बातों पर जोर दिया:

  1. पूर्व-स्थापित अधिकार: हिंदू महिलाओं का भरण-पोषण का अधिकार शास्त्रीय कानून और HSA, 1956 से पहले की मान्यता प्राप्त है। इस अधिकार के बदले दी गई संपत्ति आमतौर पर धारा 14(1) के तहत पूर्ण स्वामित्व में बदल जाती है।
  2. सीमित अधिकार: यदि दस्तावेज़ में स्पष्ट रूप से महिला के अधिकारों को सीमित किया गया है, तो धारा 14(2) लागू होती है।

कोर्ट ने पाया कि 1933 के विभाजन विलेख ने वीरभद्रम्मा को केवल 3.55 एकड़ भूमि पर आजीवन अधिकार दिया था, और यह व्यवस्था धारा 14(2) के दायरे में आती है।

निर्णय का उद्धरण

“भरण-पोषण के बदले महिला को संपत्ति प्राप्त होने का अधिकार उसकी पूर्ण स्वामित्व में बदलने के लिए पर्याप्त है, यदि वह उस संपत्ति के कब्जे में है। लेकिन यह परिवर्तन उस स्थिति में संभव है, जब शासकीय दस्तावेज़ में कोई प्रतिबंधात्मक शर्त न हो।”

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सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट और आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के फैसलों को बरकरार रखा। अपील को खारिज करते हुए, कोर्ट ने निम्नलिखित निष्कर्ष दिए:

  1. वीरभद्रम्मा का पूर्ण स्वामित्व केवल 2.09 एकड़ भूमि तक सीमित था, जैसा कि विभाजन विलेख में स्पष्ट रूप से दिया गया था।
  2. 3.55 एकड़ भूमि पर उनका अधिकार केवल जीवनकाल तक सीमित था और इसे वसीयत के माध्यम से स्थानांतरित नहीं किया जा सकता था।
  3. उनकी मृत्यु के बाद 3.55 एकड़ भूमि स्वामी की दोनों पत्नियों से उत्पन्न बेटों के बीच समान रूप से बंटेगी।

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