खाताधारक की मृत्यु के बाद नामित व्यक्ति बैंक जमा के लिए पात्र है, लेकिन उत्तराधिकार कानून स्वामित्व निर्धारित करते हैं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि नामित व्यक्ति को खाताधारक की मृत्यु के बाद बैंक जमा में धन का दावा करने का कानूनी अधिकार है, लेकिन इस बात पर जोर दिया कि ऐसे धन का स्वामित्व लागू उत्तराधिकार कानूनों द्वारा निर्धारित किया जाता है। यह निर्णय न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ और न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित की खंडपीठ द्वारा मनोज कुमार शर्मा बनाम भारत संघ और अन्य (रिट-सी संख्या 8197/2024) में दिया गया।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता मनोज कुमार शर्मा ने बैंक ऑफ बड़ौदा में कई सावधि जमा रसीदों (एफडीआर) में रखे गए धन को जारी करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने तर्क दिया कि वे एफडीआर के नामांकित व्यक्ति होने के साथ-साथ अपनी मृतक मां के कानूनी उत्तराधिकारी भी थे, जिनका 8 फरवरी, 2020 को निधन हो गया था। बैंक ने मृतक की वसीयत की वैधता के बारे में लंबित मुकदमे सहित कानूनी जटिलताओं का हवाला देते हुए धनराशि जारी करने से इनकार कर दिया था।

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याचिकाकर्ता ने पहले सिविल जज (सीनियर डिवीजन)/फास्ट ट्रैक कोर्ट, मुरादाबाद में उत्तराधिकार का मुकदमा (सिविल मुकदमा संख्या 195/2020) दायर किया था। याचिकाकर्ता की मां की वसीयत को चुनौती देने वाले एक अन्य मुकदमे के लंबित होने के कारण यह मुकदमा खारिज कर दिया गया था।

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कानूनी मुद्दों की जांच

अदालत ने कई प्रमुख कानूनी सवालों को संबोधित किया, जिनमें शामिल हैं:

1. बैंकिंग कानूनों के तहत नामांकन अधिकार:

याचिकाकर्ता ने बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 45ZA पर भरोसा किया, जो जमाकर्ता की मृत्यु पर नामांकित व्यक्ति को धन प्राप्त करने का अधिकार देता है। उन्होंने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के 2005 के परिपत्र का भी हवाला दिया, जिसमें बैंकों को उत्तराधिकार प्रमाणपत्र या क्षतिपूर्ति बांड की आवश्यकता के बिना नामांकित व्यक्तियों को धन जारी करने का आदेश दिया गया था।

2. नामांकन और उत्तराधिकार कानूनों का परस्पर संबंध:

न्यायालय ने विश्लेषण किया कि क्या बैंकिंग विनियमन अधिनियम के तहत नामित व्यक्ति के अधिकार उत्तराधिकार कानूनों के तहत कानूनी उत्तराधिकारियों के अधिकारों पर हावी हैं।

3. न्यायिक मिसालें:

न्यायालय ने राम चंद्र तलवार बनाम देवेंद्र कुमार तलवार (2010) में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की समीक्षा की, जिसमें कहा गया था कि नामित व्यक्ति कानूनी उत्तराधिकारियों के लिए ट्रस्टी के रूप में धन प्राप्त करने का हकदार है, लेकिन उसे धन का स्वामित्व प्राप्त नहीं होता है।

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न्यायालय की टिप्पणियाँ और निर्णय

डिवीजन बेंच ने निम्नलिखित मुख्य टिप्पणियाँ कीं:

– ट्रस्टी के रूप में नामिती की भूमिका:

न्यायालय ने दोहराया कि नामिती कानूनी उत्तराधिकारियों के लिए ट्रस्टी के रूप में कार्य करता है, यह कहते हुए:

“धारा 45-जेडए(2) केवल नामिती को जमाकर्ता की मृत्यु के बाद उसके स्थान पर रखती है और उसे खाते में पड़ी धनराशि प्राप्त करने का विशेष अधिकार प्रदान करती है। लेकिन यह किसी भी तरह से नामिती को धन का स्वामी नहीं बनाती है।”

– बैंक के दायित्व:

न्यायालय ने बैंक ऑफ बड़ौदा को निर्देश दिया कि वह तीन सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता को एफडीआर में धनराशि जारी करे, बशर्ते कि वह एक हलफनामा दाखिल करे कि धनराशि ट्रस्ट में रखी जाएगी और उत्तराधिकार विवाद के अंतिम निर्धारण के अनुसार वितरित की जाएगी।

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– उत्तराधिकार कानून प्राथमिकता लेते हैं:

न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि निधियों पर कानूनी उत्तराधिकारियों के अधिकार बरकरार रहते हैं और उत्तराधिकार कानूनों द्वारा शासित होते हैं, भले ही नामिती को शुरू में धनराशि प्राप्त करने का अधिकार हो या न हो।

रिट याचिका का निपटारा बैंक को याचिकाकर्ता को धनराशि जारी करने के निर्देश के साथ किया गया। हालांकि, याचिकाकर्ता को यह वचन देना था कि उत्तराधिकार विवाद के समापन तक धनराशि कानूनी उत्तराधिकारियों के लिए ट्रस्ट में रखी जाएगी।

वकील विवरण

– याचिकाकर्ता के लिए: राम लाल मिश्रा

– प्रतिवादियों के लिए: ए.एस.जी.आई. अनादि कृष्ण नारायण, हरीश कुमार यादव, ईशान शिशु और संदीप कुमार सिंह

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