हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में 2023 की आपराधिक अपील संख्या 291 में आरोपी करक्काटु मुहम्मद बसीर को बरी कर दिया, जिसे केरल हाई कोर्ट ने 1989 में गौरी की हत्या के मामले में दोषी ठहराया था। न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर दोषसिद्धि तभी संभव है, जब साक्ष्यों की एक सतत श्रृंखला आरोपी की दोषिता की ओर स्पष्ट रूप से इंगित करती हो। अदालत ने अभियोजन पक्ष के मामले में कई खामियां पाईं और कहा कि केवल संदेह के आधार पर दोषसिद्धि नहीं की जा सकती।
मामले का पृष्ठभूमि
यह मामला 17 अगस्त, 1989 का है, जब गौरी का शव केरल के एक धान के खेत में पाया गया था। पुलिस ने करक्काटु मुहम्मद बसीर (आरोपी संख्या 1) और एक अन्य व्यक्ति (आरोपी संख्या 2) को संदेह के आधार पर हिरासत में लिया, यह आरोप लगाते हुए कि बसीर ने आरोपी संख्या 2 के साथ अवैध संबंधों के कारण हत्या की और शव को ठिकाने लगाया। अभियोजन पक्ष का दावा था कि गौरी ने इस संबंध का पता लगाया, जिससे झगड़े के दौरान उसकी हत्या कर दी गई।
सेशंस कोर्ट ने बसीर को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत हत्या का दोषी ठहराया और आरोपी संख्या 2 को धारा 201 (सबूत नष्ट करने) के तहत दोषी ठहराया। यह फैसला केरल हाई कोर्ट द्वारा बरकरार रखा गया, जिसके बाद बसीर ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
प्रमुख कानूनी मुद्दे
1. परिस्थितिजन्य साक्ष्य की विश्वसनीयता: मुख्य मुद्दा यह था कि क्या अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत परिस्थितिजन्य साक्ष्य एक सतत श्रृंखला बनाते हैं जो बसीर की दोषिता को निष्पक्ष रूप से साबित करते हैं।
2. गवाहों के बयान और उपस्थित साक्ष्य की स्वीकृति: अदालत ने यह जांच की कि क्या गवाहों के बयान और भौतिक साक्ष्य, जैसे कथित हत्या का हथियार और खून से सने वस्त्र, बसीर को अपराध स्थल पर दिखाने और अपराध से जोड़ने में विश्वसनीय थे।
3. संदेह का सिद्धांत: अदालत ने यह मूल्यांकन किया कि क्या अभियोजन पक्ष के साक्ष्य पर पर्याप्त संदेह किया जा सकता है, जिससे अपराध के लिए वैकल्पिक संभावनाएं उत्पन्न होती हैं।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह ने अपने निर्णय में अभियोजन पक्ष के तर्कों में कई खामियां बताईं। उन्होंने कहा कि:
“घटनाओं की श्रृंखला इतनी स्पष्ट होनी चाहिए कि अदालत को एक ही निष्कर्ष पर पहुंचने के अलावा कोई अन्य विकल्प न बचे, अर्थात्, आरोपी की दोषिता।”
अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष के साक्ष्य इस मानक पर खरे नहीं उतरते। अदालत ने कहा:
“केवल संदेह, चाहे वह कितना भी प्रबल क्यों न हो, प्रमाण का स्थान नहीं ले सकता।”
प्रमुख साक्ष्यों का विश्लेषण
1. घटनास्थल पर उपस्थिति: अभियोजन पक्ष ने मृतका की मां और बहन (PW2 और PW3) और आरोपी संख्या 2 के बच्चों (PW10 और PW11) के बयान पर भरोसा किया। हालांकि, बच्चों ने कहा कि गौरी ने 9:00 बजे रात को घर छोड़ दिया था, जबकि हत्या का समय इससे बाद का था। एक अन्य गवाह PW14 ने दावा किया कि उसने बसीर को उसी रात घर में प्रवेश करते देखा, लेकिन उसने स्वीकार किया कि उसने केवल व्यक्ति की पीठ देखी और मान लिया कि वह बसीर ही था। न्यायमूर्ति मसीह ने कहा कि इस प्रकार की मान्यता इस पहचान को संदेहास्पद बनाती है।
2. खून से सने वस्त्रों की बरामदगी: अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि बसीर के खून से सने कपड़े और अन्य वस्त्र बरामद किए गए थे, जो एक गवाह (PW18) के पास से प्राप्त हुए थे। हालांकि, PW18 ने बताया कि पुलिस ने यह बैग कुछ दिन पहले लिया था और फिर लौटा दिया, जिससे यह संकेत मिलता है कि वस्त्र संभवतः पुलिस द्वारा लगाए गए थे।
3. हत्या का हथियार और रक्त साक्ष्य: अभियोजन पक्ष ने नारियल खुरचनी को हत्या के हथियार के रूप में प्रस्तुत किया, जो आरोपी संख्या 2 के घर से बरामद की गई थी। हालांकि, बरामदगी के समय गवाहों (PW26 से PW28) ने कहा कि वे तलाशी के दौरान मौजूद नहीं थे, जिससे इस साक्ष्य की विश्वसनीयता कमजोर पड़ गई।
अदालत का निष्कर्ष
अदालत ने कहा:
“साक्ष्य को घटनाओं की श्रृंखला इतनी पूर्णता से स्थापित करनी चाहिए कि निर्दोषता के किसी भी संभावित निष्कर्ष की कोई संभावना न बचे।”
अदालत ने पाया कि समय-सीमा और प्रस्तुत किए गए साक्ष्य बसीर की उपस्थिति को अपराध स्थल पर सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं थे। इसके अलावा, न्यायमूर्ति मसीह ने कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा बताए गए शव परिवहन का तरीका अव्यावहारिक लगता है, विशेषकर तब, जब मार्ग एक 24 घंटे चलने वाली आरा मशीन के पास से गुजरता था।
इन विसंगतियों को देखते हुए, अदालत ने कहा कि हाई कोर्ट और सेशंस कोर्ट ने ऐसे परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर भरोसा कर गलती की जो बसीर की दोषिता को स्पष्ट रूप से सिद्ध नहीं करते थे। निर्णय में कहा गया:
“अभियोजन द्वारा प्रस्तुत की जा रही घटनाओं की श्रृंखला में गंभीर खामियां और महत्वपूर्ण अंतर हैं, जिससे यह निष्कर्ष निकलता है कि अभियोजन पक्ष ने आरोपी की दोषिता साबित करने में विफलता पाई है।”
सुप्रीम कोर्ट ने बसीर की दोषसिद्धि और सजा को रद्द कर दिया, उसे संदेह का लाभ देते हुए तुरंत रिहा करने का आदेश दिया।