इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक याचिकाकर्ता द्वारा दायर दो स्थानांतरण आवेदनों को खारिज कर दिया है, जिसमें वैवाहिक और हिरासत की कार्यवाही को लखनऊ के पारिवारिक न्यायालय से बरेली स्थानांतरित करने की मांग की गई थी। आवेदन उसके पति के खिलाफ दायर किए गए थे, जिसमें उसके बरेली में नौकरी के स्थानांतरण को स्थानांतरण का आधार बताया गया था। हालांकि, अदालत ने फैसला सुनाया कि पति या पत्नी का बार-बार स्थानांतरण एक स्थानांतरण योग्य नौकरी में केस को स्थानांतरित करने के लिए वैध आधार नहीं बनता है, खासकर जब आवेदक का स्थायी निवास लखनऊ में हो और उनका नाबालिग बच्चा वहीं रहता हो।
मामले की पृष्ठभूमि:
स्थानांतरण आवेदनों में दो मामले शामिल थे: एक अभिभावक और वार्ड अधिनियम की धारा 25 के साथ धारा 7 के तहत बच्चे की हिरासत से संबंधित (केस नंबर 353 ऑफ 2023), और दूसरा हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत दायर तलाक की याचिका (केस नंबर 4412 ऑफ 2022)। दोनों मामलों की सुनवाई वर्तमान में लखनऊ के पारिवारिक न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश द्वारा की जा रही है।
आवेदक, जो बैंक ऑफ बड़ौदा में एचआरएम क्षेत्रीय अधिकारी के रूप में कार्यरत है, बरेली में तैनात है और उसने सुविधा के आधार पर इन मामलों को लखनऊ से बरेली स्थानांतरित करने की मांग की। उसके वकील ने तर्क दिया कि, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थापित उदाहरणों के अनुसार, स्थानांतरण याचिकाओं पर निर्णय लेते समय पत्नी की सुविधा को प्राथमिक विचारणीय बिंदु माना जाना चाहिए।
हालांकि, विपक्षी पक्ष के वकील ने स्थानांतरण का विरोध किया, जिसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया कि आवेदक की नौकरी के लिए बार-बार स्थानांतरण की आवश्यकता होती है, और लखनऊ उसका स्थायी निवास स्थान है। इसके अलावा, उनका नाबालिग बच्चा, जिसकी कस्टडी का विवाद चल रहा है, लखनऊ में रहता है और स्कूल जाता है।
शामिल कानूनी मुद्दे:
मुख्य कानूनी मुद्दा इस बात पर केंद्रित था कि क्या पत्नी का बरेली में स्थानांतरण लखनऊ से मामलों को स्थानांतरित करने के लिए पर्याप्त आधार प्रदान करता है। आवेदक ने सुमिता सिंह बनाम कुमार संजय और अन्य में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर भरोसा किया, जिसमें माना गया था कि ऐसी याचिकाओं पर निर्णय लेते समय पत्नी की सुविधा को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
दूसरी ओर, विपक्षी पक्ष के वकील ने आवेदन को खारिज करने के कारण के रूप में आवेदक की स्थानांतरणीय सेवा का हवाला दिया। उन्होंने तर्क दिया कि आवेदक की नौकरी की प्रकृति, जिसके कारण उसे कई बार स्थानांतरित होना पड़ा है, स्थानांतरण को उचित नहीं ठहराती है, खासकर तब जब नाबालिग बच्चा लखनऊ में रहता है। अदालत को डेल्मा लुबना कोएलो बनाम एडमंड क्लिंट फर्नांडीस (2023) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया गया, जहां अदालत ने कहा कि स्थानांतरण याचिकाओं, विशेष रूप से वैवाहिक विवादों में, पत्नियों को दी गई उदारता के संभावित दुरुपयोग को रोकने के लिए केस-दर-केस आधार पर जांच की जानी चाहिए।
अदालत का फैसला:
मामले की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी ने स्थानांतरण आवेदनों को खारिज कर दिया। अदालत ने टिप्पणी की कि पत्नी की सुविधा एक महत्वपूर्ण विचार है, लेकिन आवेदक का बार-बार स्थानांतरण मामले को स्थानांतरित करने के आधार को कमजोर करता है। चूंकि लखनऊ आवेदक का स्थायी निवास है और नाबालिग बच्चा शहर में रहता है, इसलिए मामले का वहीं रहना अधिक उचित था।
न्यायमूर्ति विद्यार्थी ने यह भी कहा कि न्यायिक दक्षता के लिए तलाक और हिरासत के मामलों का फैसला आदर्श रूप से एक ही अदालत में किया जाना चाहिए। डेल्मा लुब्ना कोएलो बनाम एडमंड क्लिंट फर्नांडीस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा, “हर मामले पर उसके गुण-दोष के आधार पर विचार किया जाना चाहिए। स्थानांतरण याचिकाओं में दिखाई गई उदारता का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए।”
कोर्ट ने आगे जोर देते हुए कहा, “आवेदक का बार-बार स्थानांतरण लखनऊ से बरेली मामलों को स्थानांतरित करने के लिए कोई अच्छा आधार नहीं देता है, खासकर इसलिए क्योंकि उसका स्थायी निवास लखनऊ में है और नाबालिग बच्चा भी वहीं रहता है।”