पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने क्लर्क को दूसरा एसीपी लाभ देने से इनकार करने पर जिला न्यायाधीश पर ₹10,000 का जुर्माना लगाया

मनमाने सेवा व्यवहारों की तीखी आलोचना करते हुए, पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने पटियाला सत्र प्रभाग में क्लर्क मुनीश गौतम को दूसरा सुनिश्चित कैरियर प्रगति (एसीपी) लाभ देने से इनकार करने पर पटियाला के जिला एवं सत्र न्यायाधीश पर ₹10,000 का जुर्माना लगाया है। न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता को एसीपी लाभ देने से इनकार करना भेदभावपूर्ण “चुनने” के दृष्टिकोण का परिणाम है।

मुनीश गौतम बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य (सीडब्ल्यूपी संख्या 3903/2021) मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति महाबीर सिंह सिंधु ने की, जिन्होंने 9 जनवरी, 2020 को जिला न्यायाधीश द्वारा जारी किए गए विवादित आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें गौतम के दूसरे एसीपी के दावे को खारिज कर दिया गया था। न्यायालय ने माना कि समान स्थिति वाले कर्मचारियों को लाभ प्रदान करते हुए लाभ देने से इनकार करना भेदभावपूर्ण कृत्य है।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता मुनीश गौतम को अक्टूबर 2009 में मानसा के सत्र प्रभाग में क्लर्क के रूप में नियुक्त किया गया था। बाद में उन्हें नवंबर 2014 में पटियाला सत्र प्रभाग में स्थानांतरित कर दिया गया। पंजाब सरकार ने 2006 में अपनी अधिसूचना के माध्यम से एक एसीपी योजना शुरू की, जिसके तहत बिना पदोन्नति के 4, 9 और 14 साल की सेवा पूरी करने के बाद कर्मचारियों को लाभ मिलता है। गौतम को 2013 में पहला एसीपी लाभ मिला था, लेकिन उनके स्थानांतरण के कारण नौ साल की सेवा के बाद उन्हें दूसरा एसीपी देने से मना कर दिया गया था।

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यह इनकार एक तकनीकी आधार पर किया गया था कि एक सत्र प्रभाग से दूसरे में उनके स्थानांतरण के कारण एसीपी के उद्देश्य से उनकी पिछली सेवा समाप्त हो गई थी। हालांकि, गौतम ने तर्क दिया कि उनकी पिछली सेवा को वेतन और पेंशन संबंधी लाभों के लिए मान्यता दी गई थी, इसलिए इसे एसीपी योजना के लिए भी माना जाना चाहिए।

कानूनी मुद्दे 

इस मामले में मुख्य कानूनी मुद्दा यह था कि क्या एक सत्र प्रभाग से दूसरे सत्र प्रभाग में स्थानांतरित होने वाले कर्मचारी की पिछली सेवा को एसीपी लाभों के लिए जब्त किया जा सकता है, जबकि वेतन और पेंशन जैसे अन्य लाभों के लिए विचार किया जा सकता है। गौतम के वकील, श्री पुनीत शर्मा ने तर्क दिया कि अन्य स्थानांतरित कर्मचारियों को भी इसी तरह के लाभ दिए गए थे और उन्होंने सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत प्राप्त जानकारी को सबूत के तौर पर उद्धृत किया। याचिकाकर्ता ने हरियाणा राज्य बनाम दीपक सूद सहित सुप्रीम कोर्ट के पिछले निर्णयों पर भी भरोसा किया, जिसमें यह माना गया था कि कैरियर प्रगति लाभों के लिए पिछली सेवा की उपेक्षा नहीं की जा सकती।

दूसरी ओर, पंजाब राज्य और पटियाला के जिला न्यायाधीश सहित प्रतिवादियों के वकील ने तर्क दिया कि 2015 में पेश किए गए पंजाब सिविल सेवा नियमों के नियम 4.8 (बी) ने गौतम को दूसरे एसीपी के उद्देश्य से अपनी पिछली सेवा का दावा करने से रोक दिया।

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न्यायालय की टिप्पणियाँ और निर्णय

न्यायमूर्ति सिंधु ने अपने निर्णय में इस बात पर जोर दिया कि नियम 4.8(बी) याचिकाकर्ता के 2014 में पटियाला में स्थानांतरण के बाद पेश किया गया था और इसलिए, इसका पूर्वव्यापी प्रभाव नहीं हो सकता। न्यायालय ने इस तथ्य पर भी प्रकाश डाला कि इसी तरह के अन्य कर्मचारियों को एसीपी लाभ मिला था, जो गौतम के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार को दर्शाता है।

न्यायालय ने टिप्पणी की, “एक पुरानी कहावत है ‘आप मुझे आदमी दिखाएँ और मैं आपको नियम दिखाऊँगा’, जिसका अर्थ है कि नियम इस बात पर निर्भर करते हैं कि व्यक्ति कितना प्रभावशाली या शक्तिशाली है।” न्यायमूर्ति सिंधु ने नियमों के मनमाने ढंग से लागू होने की ओर इशारा किया और निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता का दावा वैध था। उन्होंने आगे कहा कि गौतम को लाभ देने से इनकार करने का कोई औचित्य नहीं था, जबकि यह दूसरों को दिया गया था।

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इन निष्कर्षों के आलोक में, न्यायालय ने पटियाला के जिला और सत्र न्यायाधीश पर ₹10,000 का जुर्माना लगाया और आदेश दिया कि यह राशि याचिकाकर्ता को तीन महीने के भीतर भुगतान की जाए। 9 जनवरी, 2020 के विवादित आदेश को भी रद्द कर दिया गया।

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