माता-पिता के भरण-पोषण का बच्चों का कर्तव्य संपत्ति वितरण पर निर्भर नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में, जो बच्चों के अपने माता-पिता के प्रति दायित्वों को रेखांकित करता है, कहा है कि माता-पिता के भरण-पोषण का कर्तव्य बच्चों के बीच संपत्ति वितरण से स्वतंत्र है। न्यायालय का यह निर्णय गोविंद लोधी द्वारा दायर एक रिट याचिका के जवाब में आया, जिन्होंने भरण-पोषण आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें और उनके भाइयों को अपनी मां का आर्थिक रूप से समर्थन करने का आदेश दिया गया था। मामले की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति जी.एस. अहलूवालिया ने याचिका को खारिज करते हुए इस बात पर जोर दिया कि बच्चों का अपने माता-पिता का भरण-पोषण करना एक मौलिक कर्तव्य है, चाहे उन्हें कोई भी संपत्ति या संपत्ति प्राप्त हुई हो या नहीं।

मामले की पृष्ठभूमि:

यह मामला तब शुरू हुआ जब श्रीमती. याचिकाकर्ता गोविंद लोधी की मां हक्की बाई ने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007 की धारा 16 के तहत एक आवेदन दायर किया। उसने अपने बेटों से वित्तीय भरण-पोषण की मांग की, जिसमें आरोप लगाया गया कि यद्यपि उसने अपनी जमीन बिक्री विलेखों के माध्यम से उनके बीच वितरित की थी, लेकिन वे उसके भरण-पोषण के लिए अपने वादे से मुकर गए। गाडरवारा के अनुविभागीय अधिकारी (एसडीओ) ने एक राजस्व मामले में उसके प्रत्येक बेटे को 3,000 रुपये प्रति माह, कुल 12,000 रुपये प्रति माह भुगतान करने का निर्देश दिया।

इस आदेश से व्यथित होकर गोविंद लोधी ने नरसिंहपुर के अपर कलेक्टर के समक्ष अपील की। ​​अपर कलेक्टर ने राशि को संशोधित कर प्रति पुत्र 2,000 रुपये प्रति माह कर दिया, जिससे कुल राशि घटकर 8,000 रुपये प्रति माह हो गई। इस निर्णय से असंतुष्ट गोविंद लोधी ने भरण-पोषण आदेश को रद्द करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

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कानूनी मुद्दे:

याचिकाकर्ता द्वारा उठाया गया मुख्य कानूनी मुद्दा उसके इस तर्क के इर्द-गिर्द घूमता है कि उसे अपनी मां के भरण-पोषण के लिए उत्तरदायी नहीं होना चाहिए क्योंकि उसे अपनी मां द्वारा अपने बेटों के बीच बांटी गई जमीन का कोई हिस्सा नहीं मिला है। उसने तर्क दिया कि अपनी मां का भरण-पोषण करने का उसका दायित्व इस तथ्य से नकारा गया कि उसे संपत्ति से कोई लाभ नहीं हुआ।

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न्यायालय की टिप्पणियां और निर्णय:

न्यायमूर्ति जी.एस. अहलूवालिया ने एक विस्तृत निर्णय में याचिकाकर्ता की दलीलों को खारिज कर दिया, जिसमें बच्चों के अपने माता-पिता का भरण-पोषण करने के वैधानिक कर्तव्य को दोहराया गया। न्यायालय ने टिप्पणी की:

“माता-पिता को भरण-पोषण के भुगतान का प्रश्न इस तथ्य पर निर्भर नहीं करता है कि बच्चों को कितनी संपत्ति दी गई है। बच्चों का यह कर्तव्य है कि वे अपने माता-पिता का भरण-पोषण करें।”

न्यायाधीश ने आगे कहा कि यदि याचिकाकर्ता को लगता है कि संपत्ति का वितरण अनुचित है, तो वह सिविल मुकदमा कर सकता है। हालांकि, इससे उसे भरण-पोषण देने के दायित्व से छूट नहीं मिलती।

न्यायालय ने निचली अदालतों के निर्णयों को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया कि बेटों को अपनी मां को वित्तीय सहायता प्रदान करने का निर्देश देकर उन्होंने अपने अधिकार क्षेत्र में काम किया। न्यायमूर्ति अहलूवालिया ने पाया कि चार बेटों में बराबर-बराबर 8,000 रुपये प्रति माह की संशोधित भरण-पोषण राशि उचित है और जीवन-यापन की लागत तथा दैनिक आवश्यकताओं के अनुरूप है।

इसके बाद याचिका खारिज कर दी गई और न्यायालय ने पुष्टि की कि माता-पिता का भरण-पोषण करने का दायित्व सर्वोपरि है और यह किसी संपत्ति के लेन-देन या परिसंपत्तियों के वितरण में कथित अन्याय पर निर्भर नहीं है।

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मामले का विवरण:

– मामले का शीर्षक: गोविंद लोधी बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य

– मामला संख्या: डब्ल्यू.पी. संख्या 25471/2024

– पीठ: न्यायमूर्ति जी.एस. अहलूवालिया

वकील:

– याचिकाकर्ता (गोविंद लोधी) की ओर से: अधिवक्ता श्री बृजेंद्र स्वरूप साहू

– प्रतिवादियों (मध्य प्रदेश राज्य और अन्य) की ओर से: सरकारी अधिवक्ता श्री मोहन सौसरकर

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