[यूपी धर्मांतरण अधिनियम] धार्मिक स्वतंत्रता से जबरदस्ती समझौता नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जबरन धर्मांतरण और निकाह में भूमिका के लिए मौलाना को जमानत देने से किया इनकार

मोहम्मद शाने आलम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (आपराधिक विविध जमानत आवेदन संख्या 29497/2024) के मामले में, आवेदक, मोहम्मद शाने आलम ने उत्तर प्रदेश धर्म के गैरकानूनी धर्मांतरण निषेध अधिनियम, 2021 की धारा 3/5(1) के तहत दर्ज केस क्राइम संख्या 183/2024 के संबंध में जमानत मांगी। यह मामला आरोपों से संबंधित है कि आलम, एक मौलाना (धार्मिक पुजारी) ने पीड़ित महिला का जबरन धर्मांतरण और उसके बाद निकाह (इस्लामिक विवाह) कराने में मदद की।

शामिल कानूनी मुद्दे:

मुख्य कानूनी मुद्दा उत्तर प्रदेश धर्म के गैरकानूनी रूपांतरण निषेध अधिनियम, 2021 की प्रयोज्यता के इर्द-गिर्द घूमता है। यह अधिनियम गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या धोखाधड़ी के माध्यम से धर्मांतरण को रोकने के लिए बनाया गया था। विशेष रूप से, अधिनियम के अनुसार कोई भी व्यक्ति जो अपना धर्म बदलना चाहता है, उसे 60 दिन पहले जिला मजिस्ट्रेट को एक घोषणा प्रस्तुत करनी होगी।

अदालत की टिप्पणियाँ:

न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने जमानत याचिका पर सुनवाई की। कार्यवाही के दौरान, आवेदक के वकील ने तर्क दिया कि आलम ने केवल निकाह किया था और किसी भी जबरन धर्मांतरण में उसकी कोई भूमिका नहीं थी। आवेदक ने दावा किया कि उसने 11 मार्च, 2023 की तारीख वाले निकाहनामा (विवाह अनुबंध) पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन आगे उसकी कोई भूमिका नहीं थी। आवेदक का कोई पूर्व आपराधिक इतिहास नहीं था और वह 2 जून, 2024 से जेल में था।

दूसरी ओर, राज्य के वकील ने जमानत का विरोध करते हुए धारा 164 सीआरपीसी के तहत पीड़िता के बयान सहित साक्ष्य प्रस्तुत किए, जिसमें उसने मुख्य आरोपी अमन पर उसका शोषण करने और आलम द्वारा निकाह किए जाने से पहले उसे इस्लाम में धर्मांतरण के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया।

अदालत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि अधिनियम, 2021 के तहत, “धर्म परिवर्तक” कोई भी व्यक्ति है जो धर्मांतरण करता है, जैसे मौलवी, और आवेदक इस परिभाषा में फिट बैठता है। अदालत ने जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष अनिवार्य घोषणा की अनुपस्थिति पर ध्यान दिया, जैसा कि अधिनियम की धारा 8 के तहत आवश्यक है। पीड़िता के स्पष्ट बयान ने इस निष्कर्ष को पुष्ट किया कि आलम ने जबरन धर्मांतरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

न्यायालय का निर्णय:

न्यायमूर्ति अग्रवाल ने साक्ष्यों और अधिनियम के प्रावधानों के आलोक में पाया कि उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 के तहत आवेदक के विरुद्ध प्रथम दृष्टया मामला स्थापित होता है। न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि जमानत देने का कोई आधार मौजूद नहीं था, और जमानत आवेदन को खारिज कर दिया गया।

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शामिल पक्ष:

– आवेदक: मोहम्मद शाने आलम

– विपक्षी पक्ष: उत्तर प्रदेश राज्य

– आवेदक के वकील: नंद किशोर मिश्रा

– विपक्षी पक्ष के वकील: सरकारी अधिवक्ता (जी.ए.)

– मामला अपराध संख्या: 183/2024

– पुलिस स्टेशन: अंकुर विहार, जिला गाजियाबाद

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