कर्नाटक हाईकोर्ट ने गवाह को वापस बुलाने से इनकार किया: देरी की आलोचना करते हुए इसे न्याय में देरी का ‘क्लासिक उदाहरण’ बताया

स्टेनली कीर्तिराज @ स्टेनली कीर्तिराज बनाम कर्नाटक राज्य (सीआरएल.पी. संख्या 6269/2024) के मामले में याचिकाकर्ता श्री स्टेनली कीर्तिराज पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 408 (आपराधिक विश्वासघात), 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी) और 420 (धोखाधड़ी और बेईमानी से संपत्ति की डिलीवरी के लिए प्रेरित करना) के तहत दर्ज एक आपराधिक मामले में आरोप लगाया गया था। 2009 में शुरू किए गए इस मामले में आरोप लगाया गया था कि श्री कीर्तिराज ने एक सरकारी अधिकारी के खिलाफ धोखाधड़ी और जालसाजी की, जिसके कारण पुलिस ने गहन जांच के बाद आरोप पत्र दाखिल किया।

यह मुकदमा 15 वर्षों से अधिक समय से चल रहा है, जिसमें बचाव पक्ष द्वारा बार-बार स्थगन मांगे जाने के कारण काफी देरी हुई है। श्री कीर्तिराज के कानूनी सलाहकार, श्री एलंगोवन के. ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 311 के तहत एक प्रमुख गवाह, पीडब्लू 2 को आगे की जिरह के लिए वापस बुलाने के लिए याचिका दायर की, जिसमें दावा किया गया कि पहले की जिरह अपर्याप्त थी। याचिका गवाह की मूल परीक्षा और जिरह के छह साल बाद दायर की गई थी।

शामिल कानूनी मुद्दे:

इस मामले में प्राथमिक कानूनी मुद्दा धारा 311 सीआरपीसी के आह्वान के इर्द-गिर्द केंद्रित था, जो अदालत को किसी भी चरण में गवाह को वापस बुलाने की अनुमति देता है यदि यह मामले के न्यायोचित निर्णय के लिए आवश्यक है। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए पीडब्लू 2 को वापस बुलाना आवश्यक था। हालाँकि, वापस बुलाने के अनुरोध का समय और कारण जांच के दायरे में थे, क्योंकि अनुरोध गवाह की कई बार पहले ही जांच हो चुकी थी।

न्यायालय का निर्णय:

न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना की अध्यक्षता में कर्नाटक हाईकोर्ट ने 22 जुलाई, 2024 को याचिका खारिज कर दी। न्यायालय ने कहा कि बचाव पक्ष ने पिछले कई वर्षों में बार-बार स्थगन की मांग की है, जिससे अनावश्यक रूप से मुकदमे में देरी हो रही है। न्यायालय ने इस व्यवहार की आलोचना की, इसे “क्लासिक उदाहरण” बताया कि किस तरह कानूनी अधिकारों की आड़ में कार्यवाही को घसीटा जाता है, जिससे अंततः न्याय की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होती है।

न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि धारा 311 Cr.P.C. को न्याय को बनाए रखने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जिसमें आवश्यक होने पर गवाहों को वापस बुलाने की अनुमति दी जाती है, लेकिन कार्यवाही में देरी करने के लिए इसका दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए। इस मामले में, न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता के आवेदन का उद्देश्य केवल मुकदमे को लम्बा खींचना था, यह देखते हुए कि गवाह की प्रारंभिक जांच के बाद से छह साल बीत चुके थे।

Also Read

महत्वपूर्ण अवलोकन:

न्यायमूर्ति नागप्रसन्ना ने कहा कि स्थगन के लिए बार-बार अनुरोध और धारा 311 Cr.P.C. के तहत विलंबित आवेदन कानूनी प्रक्रिया में हेरफेर करने के प्रयास के स्पष्ट संकेत थे। अदालत ने निचली अदालतों के आदेशों की पुष्टि की, जिन्होंने भी वापसी आवेदन को खारिज कर दिया था, तथा इस बात पर जोर दिया कि इस तरह की युक्तियों से न्याय में देरी नहीं होनी चाहिए।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles