जीवनसाथी की निजी बातचीत को बिना उनकी जानकारी के रिकॉर्ड करना निजता का गंभीर उल्लंघन है: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने वैवाहिक विवाद में साक्ष्य के रूप में रिकॉर्डिंग की अनुमति नहीं दी

इंदौर स्थित मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में वैवाहिक विवादों में निजता के मुद्दे को संबोधित किया है। विविध याचिका संख्या 1422/2024 के मामले में याचिकाकर्ता ने अपने और तीसरे पक्ष के बीच रिकॉर्ड की गई बातचीत की स्वीकार्यता को चुनौती दी है, जिसे प्रतिवादी ने वैवाहिक विवाद में साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल करने की मांग की थी।

याचिकाकर्ता और प्रतिवादी के बीच विवाह 24 फरवरी, 2016 को संपन्न हुआ था। याचिकाकर्ता ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अंतरिम भरण-पोषण के लिए याचिका दायर की, जबकि प्रतिवादी ने याचिकाकर्ता के कथित अवैध संबंध के दावों को पुष्ट करने के लिए रिकॉर्ड की गई बातचीत वाले एक इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज (एक कॉम्पैक्ट डिस्क) को पेश करने की मांग की।

शामिल कानूनी मुद्दे

इस मामले में प्राथमिक कानूनी मुद्दा यह था कि क्या गुप्त रूप से रिकॉर्ड की गई बातचीत को वैवाहिक विवाद में साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि इस तरह की रिकॉर्डिंग भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है, जो गोपनीयता के अधिकार की गारंटी देता है। इस तर्क का समर्थन इस तरह के उदाहरणों से हुआ:

– पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1997): इस मामले ने मौलिक अधिकार के रूप में गोपनीयता के महत्व पर जोर दिया।

– आशा लता सोनी बनाम दुर्गेश सोनी (2023): वैवाहिक विवादों में गोपनीयता पर रुख को मजबूत किया।

– नेहा बनाम विभोर गर्ग (2021): गोपनीयता उल्लंघन के माध्यम से प्राप्त साक्ष्य की अस्वीकार्यता पर प्रकाश डाला।

न्यायालय का निर्णय

मामले की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति गजेंद्र सिंह ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसमें ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया गया, जिसमें रिकॉर्ड की गई बातचीत को साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया गया था। न्यायालय ने कहा कि:

“पति या पत्नी की निजी बातचीत को उनकी जानकारी के बिना रिकॉर्ड करना निजता का गंभीर उल्लंघन है और यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 का उल्लंघन है।”

न्यायमूर्ति सिंह ने अनुरिमा उर्फ ​​आभा मेहता बनाम सुनील मेहता (2016) और अभिषेक रंजन और हेमलता चौबे (2023) सहित पिछले निर्णयों का संदर्भ दिया, जिसमें कहा गया था कि इस तरह की रिकॉर्डिंग निजता के अधिकार का उल्लंघन करती है और सबूत के तौर पर स्वीकार्य नहीं है।

महत्वपूर्ण टिप्पणियां

न्यायालय ने अपने फैसले में कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं:

1. निजता का अधिकार: न्यायालय ने रेखांकित किया कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है और वैवाहिक विवादों में भी इसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता है।

2. साक्ष्य की स्वीकार्यता: न्यायालय ने कहा कि निजता के उल्लंघन के माध्यम से प्राप्त साक्ष्य को न्यायालय में स्वीकार नहीं किया जा सकता है, जो पहले के मामलों में स्थापित सिद्धांतों के अनुरूप है।

3. मौलिक अधिकारों का संरक्षण: इस निर्णय ने वैवाहिक संबंधों के संदर्भ में भी व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के महत्व को पुष्ट किया।

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केस विवरण

– केस संख्या: विविध याचिका संख्या 1422/2024

– पीठ: न्यायमूर्ति गजेंद्र सिंह

– वकील: याचिकाकर्ता की ओर से ज्योत्सना राठौर, प्रतिवादी की ओर से लखन सिंह चंदेल

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