“बहुत कठिन शर्तें”: सुप्रीम कोर्ट ने 498ए मामले में पति की जमानत की शर्त को रद्द किया, जिसमें पत्नी की “शारीरिक और वित्तीय” जरूरतें पूरी करने की शर्त थी

एक महत्वपूर्ण फ़ैसले में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 4 के तहत आरोपी पति पर लगाई गई जमानत की शर्त को खारिज कर दिया है। इस शर्त के अनुसार पति को अपनी पत्नी की सभी शारीरिक और वित्तीय ज़रूरतें पूरी करनी होंगी। यह फ़ैसला न्यायमूर्ति सी.टी. रविकुमार और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने आपराधिक अपील संख्या 2024 में एसएलपी (सीआरएल) संख्या 2011/2024 से उत्पन्न मामले में यह आदेश दिया।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला 30 अगस्त, 2023 को पटना हाईकोर्ट द्वारा आपराधिक विविध संख्या 57492/2023 में पारित आदेश से उत्पन्न हुआ। हाईकोर्ट ने शिकायत मामले संख्या 1100/2021 में अपीलकर्ता सुदीप चटर्जी को अनंतिम गिरफ्तारी-पूर्व जमानत प्रदान की थी। यह शिकायत उनकी पत्नी द्वारा दायर की गई थी, जिसमें आईपीसी की धारा 498ए और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 4 के तहत अपराधों का आरोप लगाया गया था। हाईकोर्ट के जमानत आदेश में यह शर्त शामिल थी कि अपीलकर्ता को एक संयुक्त हलफनामे के माध्यम से अपनी पत्नी की सभी शारीरिक और वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करना होगा।

शामिल कानूनी मुद्दे

इस मामले में प्राथमिक कानूनी मुद्दा यह था कि क्या हाईकोर्ट द्वारा लगाई गई शर्त उचित और व्यावहारिक थी। सर्वोच्च न्यायालय ने जांच की कि क्या ऐसी शर्त संविधान में निहित व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निष्पक्षता के सिद्धांतों के अनुरूप थी और कानूनी मिसालें स्थापित कीं।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

उच्चतम न्यायालय ने, इस भारी शर्त को दरकिनार करते हुए, कानूनी कहावत पर जोर दिया कि कानून किसी व्यक्ति को ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं करता जो वह संभवतः नहीं कर सकता)। न्यायालय ने कहा कि हाईकोर्ट द्वारा लगाई गई शर्त अव्यावहारिक थी और इसे बरकरार नहीं रखा जा सकता।

न्यायमूर्ति सी.टी. रविकुमार ने निर्णय सुनाते हुए कहा:

“आरोपी की उपस्थिति, जांच के उचित तरीके और अंततः निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने की आवश्यकता के लिए असंगत शर्तें लगाने से गरिमा और संवैधानिक सुरक्षा के मानव अधिकार को भ्रामक नहीं बनाया जाना चाहिए”।

न्यायालय ने कई मिसालों का हवाला दिया, जिसमें श्री गुरबख्श सिंह सिब्बिया और अन्य का ऐतिहासिक मामला भी शामिल है। पंजाब राज्य (1980) और परवेज नूरदीन लोखंडवाला बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य (2020), जिसमें सी.आर.पी.सी. की धारा 438 के तहत लगाई गई शर्तों के निष्पक्ष और उचित होने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

वैवाहिक विवादों में जमानत की शर्तें लगाने के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने कई महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ कीं:

– अव्यवहारिक शर्तें: न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ता को अपनी पत्नी की सभी शारीरिक और वित्तीय ज़रूरतों को पूरा करने की आवश्यकता एक “बिल्कुल असंभव और अव्यवहारिक शर्त” थी।

– वैवाहिक संबंधों पर प्रभाव: न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि ऐसी शर्तें प्रतिकूल हो सकती हैं और पक्षों के बीच सुलह के लिए अनुकूल माहौल को बढ़ावा नहीं दे सकती हैं।

– मानवीय गरिमा: मानवीय गरिमा के महत्व पर जोर देते हुए न्यायालय ने कहा कि शर्तों को एक पक्ष को दूसरे पर हावी नहीं बनाना चाहिए, जिससे सद्भाव के बजाय और अधिक कलह हो सकती है।

महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ: “अभियुक्त की उपस्थिति सुनिश्चित करने की आवश्यकता के लिए असंगत शर्तें लागू करने से गरिमा और संवैधानिक सुरक्षा उपायों के संरक्षण का मानव अधिकार भ्रामक नहीं होना चाहिए”।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट ने सुदीप चटर्जी को दी गई अनंतिम जमानत को पूर्ण माना, जो जमानत के संबंध में हाईकोर्ट द्वारा निर्धारित शर्तों और सीआरपीसी की धारा 438(2) के अनुपालन के अधीन है। कोर्ट ने उम्मीद जताई कि दंपति अपने घरेलू सौहार्द को बहाल करने का प्रयास जारी रखेंगे।

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केस विवरण

केस संख्या: आपराधिक अपील संख्या 2024 (एसएलपी (सीआरएल) संख्या 2011/2024 से उत्पन्न)

बेंच: न्यायमूर्ति सी.टी. रविकुमार और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा

वकील: अपीलकर्ता के वकील, राज्य के वकील और दूसरे प्रतिवादी के वकील

पक्ष: सुदीप चटर्जी (अपीलकर्ता) बनाम बिहार राज्य और अन्य (प्रतिवादी)

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