“पावर ऑफ़ अटॉर्नी धारक द्वारा समन-पूर्व साक्ष्य अमान्य”: दिल्ली हाईकोर्ट ने मानहानि की कार्यवाही पर रोक लगाई

हाल ही में दिए गए एक फैसले में, दिल्ली हाईकोर्ट ने देव करण राजपूत द्वारा अनुपमा कुमारी के खिलाफ दायर मानहानि की शिकायत से जुड़ी कानूनी पेचीदगियों को संबोधित किया। मामला, क्रमांक CRL.M.C. 5347/2024 और CRL.M.A. 20466/2024 (स्थगन) उन आरोपों के इर्द-गिर्द घूमता है, जिनमें राजपूत की कंपनी मेसर्स मिराज फैसिलिटी मैनेजमेंट सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड की कर्मचारी कुमारी ने 16 अप्रैल, 2021 को काम से फरार होने के बाद 1 जुलाई, 2021 को व्हाट्सएप स्टेटस के जरिए मानहानिकारक बयान दिए थे।

शामिल कानूनी मुद्दे

इस मामले में प्राथमिक कानूनी मुद्दा शिकायतकर्ता के बजाय पावर ऑफ़ अटॉर्नी धारक द्वारा प्रस्तुत किए गए समन-पूर्व साक्ष्य की वैधता से संबंधित है। शिकायतकर्ता देव करण राजपूत ने अपने विशेष पावर ऑफ अटॉर्नी (एसपीए) धारक दीपक कुमार से 15 फरवरी, 2022 को समन-पूर्व साक्ष्य प्रस्तुत करवाया। बचाव पक्ष ने बिजनेस स्टैंडर्ड प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य बनाम लोहिताक्ष शुक्ला एवं अन्य, 2021 एससीसी ऑनलाइन डेल 988, सीआरएल.एम.सी. 621/2017 में दिल्ली हाईकोर्ट की समन्वय पीठ द्वारा स्थापित मिसाल का हवाला देते हुए तर्क दिया कि कानून के तहत ऐसा करना जायज़ नहीं है। इस मिसाल के अनुसार, मानहानि की शिकायत का संज्ञान केवल पीड़ित व्यक्ति से शिकायत प्राप्त होने पर ही लिया जा सकता है।

न्यायालय का निर्णय

न्यायमूर्ति अनीश दयाल की अध्यक्षता वाली दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली के द्वारका न्यायालयों में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट (एमएम) के समक्ष लंबित कार्यवाही पर रोक लगा दी। न्यायालय ने इस तर्क को स्वीकार किया कि समन-पूर्व साक्ष्य शिकायतकर्ता द्वारा स्वयं प्रस्तुत किए जाने चाहिए थे न कि पावर ऑफ अटॉर्नी धारक द्वारा। न्यायालय ने अगली सुनवाई 1 अगस्त, 2024 के लिए निर्धारित की है, तथा निर्देश दिया है कि प्रतिवादी को ईमेल सहित सभी स्वीकार्य तरीकों से नोटिस जारी किया जाए।

महत्वपूर्ण टिप्पणियां

न्यायमूर्ति अनीश दयाल ने सुनवाई के दौरान कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं:

– समन-पूर्व साक्ष्य की वैधता पर: “समन-पूर्व साक्ष्य पावर ऑफ अटॉर्नी धारक द्वारा प्रस्तुत नहीं किया जा सकता था तथा यह अनिवार्य था कि शिकायतकर्ता की स्वयं जांच की जानी चाहिए।”

– पीड़ित व्यक्ति की भूमिका पर: “केवल ‘पीड़ित व्यक्ति’ द्वारा शिकायत प्राप्त होने पर ही संज्ञान लिया जा सकता है।”

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शामिल पक्ष

– शिकायतकर्ता: देव करण राजपूत, जिसका प्रतिनिधित्व उनके एसपीए धारक दीपक कुमार कर रहे हैं।

– आरोपी: अनुपमा कुमारी, मेसर्स मिराज फैसिलिटी मैनेजमेंट सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड की पूर्व कर्मचारी।

– याचिकाकर्ता के वकील: उपलब्ध कराए गए दस्तावेज़ में निर्दिष्ट नहीं है।

– पीठ: न्यायमूर्ति अनीश दयाल।

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