बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि महाराष्ट्र के विभिन्न नगर निगमों में फायर ब्रिगेड कर्मियों के पद के लिए आवेदन करने वाली महिला उम्मीदवारों के लिए अलग-अलग ऊंचाई मानदंड रखना भेदभावपूर्ण और मनमानी नीति है।
न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी और न्यायमूर्ति जितेंद्र जैन की खंडपीठ ने पिछले सप्ताह पारित एक अंतरिम आदेश में कहा कि एक ही नौकरी के लिए अलग-अलग मानक नहीं हो सकते हैं और महिला उम्मीदवारों को ऐसे मनमाने नियमों के कारण परेशानी नहीं हो सकती है।
अदालत चार महिलाओं द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने पुणे नगर निगम के फायर ब्रिगेड में अग्निशामक/फायरमैन के पद के लिए आवेदन किया था।
उनके वकील ए एस राव ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को सूचित किया गया था कि उन्होंने उस मानदंड का पालन नहीं किया है जिसके तहत महिला उम्मीदवारों की न्यूनतम ऊंचाई 162 सेंटीमीटर होनी चाहिए।
वकील राव ने अदालत को बताया कि महाराष्ट्र फायर ब्रिगेड सेवा प्रशासन के अनुसार, महिला उम्मीदवारों के लिए न्यूनतम ऊंचाई 157 सेंटीमीटर है, लेकिन पुणे, मुंबई, ठाणे और नागपुर के नागरिक निकाय न्यूनतम ऊंचाई 162 सेंटीमीटर निर्धारित करते हैं।
वकील ने कहा, महाराष्ट्र में कई अन्य नगर निगम 157 सेंटीमीटर मानदंड का पालन करते हैं।
हाई कोर्ट ने 26 अक्टूबर को अपने आदेश में कहा कि यह “स्पष्ट भेदभाव” का मामला है।
अदालत ने कहा, “अलग-अलग निगमों के लिए अलग-अलग मानक नहीं हो सकते हैं। राज्य सरकार की किसी भी मनमानी नीति या ऐसे किसी भी मानदंड के मनमाने अनुमोदन के कारण महिला उम्मीदवारों को नुकसान नहीं हो सकता है, जो समान स्थिति वाली महिला उम्मीदवारों के साथ भेदभाव करता है।”
पीठ ने अंतरिम आदेश के जरिए पुणे नगर निगम को याचिकाकर्ता महिलाओं को चयन प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति देने का निर्देश दिया।
लेकिन उनका चयन मामले में अदालत के अंतिम आदेश के अधीन होगा, न्यायाधीशों ने कहा।
अदालत ने राज्य सरकार और पुणे नागरिक निकाय को अपना जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया और मामले की अगली सुनवाई 9 नवंबर को तय की।