इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मंगलवार को समाजवादी पार्टी (सपा) नेता स्वामी प्रसाद मौर्य की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें कथित तौर पर रामचरित मानस की प्रतियां जलाने के मामले में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले की एक अदालत में उनके खिलाफ चल रही कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई थी।
आदेश पारित करते हुए, अदालत की लखनऊ पीठ ने कहा कि आरोप पत्र और रिकॉर्ड पर मौजूद अन्य सामग्री के अवलोकन से, मौर्य के लिए निचली अदालत में मुकदमे का सामना करने का प्रथम दृष्टया मामला बनता है। पीठ का मानना था कि जन प्रतिनिधियों को सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वाला कोई भी कार्य करने से बचना चाहिए।
न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने यह आदेश पारित किया.
अपनी याचिका में, मौर्य ने निचली अदालत द्वारा पारित आरोपपत्र और समन आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें मुकदमे का सामना करने के लिए अदालत में पेश होने का निर्देश दिया गया था।
सपा नेता ने दलील दी थी कि राजनीतिक कारणों से उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया था और उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं था, इसलिए अगर उन्हें मुकदमे का सामना करना पड़ा तो यह उचित नहीं होगा।
मौर्य, सपा विधायक आरके वर्मा और अन्य के खिलाफ वकील संतोष कुमार मिश्रा की शिकायत के आधार पर 1 फरवरी को प्रतापगढ़ जिले की कोतवाली पुलिस में प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
प्राथमिकी में आरोप लगाया गया था कि आरोपियों ने हिंदू पवित्र ग्रंथ की प्रतियां जला दीं और इस तरह सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का गंभीर अपराध किया।
पुलिस ने बाद में मौर्य के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया और निचली अदालत ने सपा नेता को समन जारी किया और उन्हें अदालत में पेश होने और मुकदमे का सामना करने के लिए कहा।
मौर्य ने इस कार्यवाही को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।
मौर्य की याचिका का विरोध करते हुए, अतिरिक्त महाधिवक्ता वीके शाही और सरकारी वकील वीके सिंह ने तर्क दिया कि सपा नेता आदतन सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने के लिए ऐसे कृत्यों में लिप्त रहते हैं और रिकॉर्ड से, प्रथम दृष्टया उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सबूत उपलब्ध थे और इसलिए, निचली अदालत की कार्यवाही को रद्द नहीं किया जा सकता.
गौरतलब है कि इस मामले को लेकर लखनऊ के पीजीआई थाने में एफआईआर भी दर्ज कराई गई थी.