दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में पति के दूर के रिश्तेदारों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया है। जस्टिस अमित महाजन की पीठ ने यह माना कि “महज ताने, आकस्मिक संदर्भ, अस्पष्ट दावे या सामान्य पारिवारिक कलह” को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A के तहत ‘क्रूरता’ नहीं माना जा सकता।
हाईकोर्ट, पति की एक रिश्तेदार (मौसी) और उनकी बेटी द्वारा दायर [W.P.(CRL) 2711/2022] याचिका पर सुनवाई कर रहा था। याचिका में पुलिस स्टेशन आदर्श नगर में दर्ज FIR (संख्या 536/2022) को रद्द करने की मांग की गई थी। यह FIR आईपीसी की धारा 498A (क्रूरता), 406 (आपराधिक विश्वासघात) और 34 (समान मंशा) के तहत दर्ज की गई थी।
हाईकोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ताओं (मौसी और उसकी बेटी) के खिलाफ आरोप “अस्पष्ट” थे और उन पर आरोप तय करने के लिए “गंभीर संदेह” (grave suspicion) का कोई आधार नहीं बनता। इसलिए, कोर्ट ने उनके खिलाफ FIR से उत्पन्न होने वाली सभी आगामी कार्यवाहियों को रद्द कर दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह FIR पत्नी (प्रतिवादी संख्या 3) की शिकायत पर दर्ज की गई थी, जिनकी शादी 09.11.2019 को हुई थी। पत्नी ने आरोप लगाया कि उनके पति, सास-ससुर, ननद और दोनों याचिकाकर्ताओं (मौसी और उसकी बेटी) ने दहेज की मांग को लेकर उन्हें “प्रताड़ित किया और मारपीट की।”
शिकायत में कहा गया कि ससुराल वालों ने ‘सगन’ समारोह में कार की मांग की और बाद में कार के डाउनपेमेंट के लिए ‘सगन’ के पैसे ले लिए। पति पर भी माता-पिता से 5 लाख रुपये मांगने का आरोप लगाया गया, जिसके बाद उन्होंने 2 लाख रुपये का इंतजाम किया।
याचिकाकर्ताओं के खिलाफ विशिष्ट आरोप यह थे (जो ससुराल में नहीं रहते थे):
- मौसी (याचिकाकर्ता 1), जो 10 मिनट की दूरी पर रहती थीं, और उनकी बेटी (याचिकाकर्ता 2) ने शिकायतकर्ता के जीवन में हस्तक्षेप किया।
 - ससुराल वाले कथित तौर पर याचिकाकर्ताओं के साथ हर छोटी-बड़ी बात साझा करते थे, जैसे “वह अपने बच्चे को क्या खाना देती है।”
 - याचिकाकर्ता 1 ने कथित तौर पर शिकायतकर्ता से कहा कि “ज्यादा नखरे मत दिखाओ वरना पति की शादी अपनी बेटी (याचिकाकर्ता 2) से करा दूंगी।”
 - 14.08.2021 को, दोनों याचिकाकर्ताओं ने कथित तौर पर एक पड़ोसी के घर आकर शिकायतकर्ता के माता-पिता पर “कोई पारिवारिक मूल्य नहीं होने” की बात कहकर चिल्लाया।
 - CrPC की धारा 161 के तहत अपने बयान में, शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि उनका ‘स्त्रीधन’ उनके पति, ससुराल वालों और याचिकाकर्ताओं के कब्जे में था।
 
इस मामले में सभी आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट भी दाखिल की जा चुकी थी।
दोनों पक्षों की दलीलें
याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि FIR में उनके खिलाफ आरोप “अस्पष्ट, तुच्छ और सामान्य” (vague, frivolous and generic) हैं। यह दलील दी गई कि “पति के दूर के रिश्तेदारों को [ऐसे मामलों में] फंसाना आम बात है।” उन्होंने तर्क दिया कि चूंकि याचिकाकर्ता वैवाहिक घर में नहीं रहते थे, इसलिए उन पर 498A या 406 के तहत कोई अपराध नहीं बनता।
राज्य और शिकायतकर्ता (पत्नी) के वकीलों ने याचिका का विरोध किया। उन्होंने तर्क दिया कि मामला आरोप तय करने के स्तर पर है और शिकायतकर्ता ने FIR और अपने बयान में याचिकाकर्ताओं का “स्पष्ट रूप से नाम” लिया है। उन्होंने कहा कि “विशिष्ट आरोप” लगाए गए हैं और इस स्तर पर “अभियोजन को दबाना” (stifle the prosecution) नहीं चाहिए।
हाईकोर्ट का विश्लेषण और निष्कर्ष
जस्टिस अमित महाजन ने रिकॉर्ड की जांच करने के बाद इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन बनाम NEPC इंडिया लिमिटेड मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि हालांकि चार्जशीट दायर होने के बाद कोर्ट को हस्तक्षेप करने में सावधानी बरतनी चाहिए, लेकिन “कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए” कार्यवाही रद्द की जा सकती है।
हाईकोर्ट ने “दूर के रिश्तेदारों को भी [ऐसे मामलों में] घसीटने की बढ़ती प्रवृत्ति” पर टिप्पणी की। फैसले में कहा गया, “इस तरह के सर्वव्यापी, व्यापक और यांत्रिक आरोप, जो ठोस सबूतों के बिना होते हैं, वे उस प्रावधान [धारा 498A] के मूल इरादे और पवित्रता को कमजोर करते हैं।”
धारा 498A के आरोपों का विश्लेषण करते हुए, हाईकोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता वैवाहिक घर में नहीं रहते थे और उनके खिलाफ आरोप “टिप्पणियों” या “पारिवारिक जीवन में हस्तक्षेप” से संबंधित थे।
कोर्ट ने स्पष्ट किया: “हालांकि, महज ताने, आकस्मिक संदर्भ, अस्पष्ट दावे या सामान्य पारिवारिक कलह, जो वैवाहिक जीवन के सामान्य उतार-चढ़ाव में होते हैं, वे IPC की धारा 498A के तहत ‘क्रूरता’ की परिभाषा में आने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।”
धारा 406 (स्त्रीधन) के आरोप पर, कोर्ट ने इसे “एक अस्पष्ट आरोप” (a vague allegation) पाया। कोर्ट ने कहा, “हालांकि ऐसे सामान्य आरोप जांच शुरू करने के उद्देश्य से पर्याप्त हो सकते हैं, लेकिन वे याचिकाकर्ताओं के खिलाफ परिणामी कार्यवाही जारी रखने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।”
अदालत का फैसला
यह निष्कर्ष निकालते हुए कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ “आरोप तय करने के लिए कोई गंभीर संदेह नहीं बनता है,” हाईकोर्ट ने दोनों याचिकाकर्ताओं के खिलाफ FIR से उत्पन्न होने वाली सभी आगामी कार्यवाहियों को रद्द कर दिया।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि “अगर किसी स्तर पर, ट्रायल कोर्ट को याचिकाकर्ताओं के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सबूत मिलते हैं, तो वह CrPC के अनुसार उचित कदम उठाने के लिए स्वतंत्र है।”

                                    
 
        


