बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा (BCMG) ने वकील रंजीता वेनगुर्लेकर को दो वर्षों के लिए वकालत से निलंबित कर दिया है। यह कार्रवाई एक शिकायत के आधार पर की गई, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उन्होंने एक क्लाइंट से ₹80,000 की फर्जी कोर्ट फीस वसूली थी।
यह आदेश बार काउंसिल की तीन सदस्यीय अनुशासनात्मक समिति—जिसमें चेयरमैन यू.पी. वरुंजीकर और सदस्य एस.डी. देसाई तथा ए.ए. गर्गे शामिल थे—ने पारित किया। आदेश में वकील को निर्देश दिया गया है कि वह एक महीने के भीतर शिकायतकर्ता को ₹25,000 मुआवज़े के रूप में अदा करें।
आदेश में कहा गया—
“शिकायत आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है… प्रतिवादी की सनद दो वर्षों के लिए निलंबित की जाती है और ₹25,000 की लागत शिकायतकर्ता के पक्ष में दी जाती है, जिसे प्रतिवादी को इस सूचना की प्राप्ति की तिथि से एक माह के भीतर अदा करना होगा।”

शिकायतकर्ता अभिजीत जगन्नाथ ज़ादोकार ने आरोप लगाया कि वेनगुर्लेकर ने उनसे ₹80,000 कोर्ट फीस के नाम पर लिए और उसके बदले फर्जी रसीद दी। उनका कहना है कि उन्होंने कुल ₹1,50,000 वकील को दिए और उनकी कुल क्षति लगभग ₹21 लाख हुई। उन्होंने अपने दावे के समर्थन में भुगतान रसीदें, व्हाट्सएप संदेश, पुलिस संचार और 65-बी प्रमाणपत्र सहित साक्ष्य प्रस्तुत किए।
वेनगुर्लेकर ने आरोपों को नकारते हुए कहा कि ज़ादोकार केवल परामर्श लेने आए थे और ₹80,000 कोर्ट फीस तथा ₹50,000 उनकी फीस के तौर पर दिए गए थे। हालांकि उन्होंने 20 मार्च 2025 को शिकायत का उत्तर दायर किया, लेकिन इसके बाद न तो वे और न ही उनका कोई प्रतिनिधि सुनवाई में उपस्थित हुआ।
अनुशासनात्मक समिति ने पाया कि शिकायतकर्ता द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य निर्विवादित रह गए। आदेश में कहा गया—
“शिकायतकर्ता ने अपने दावों के समर्थन में शपथ-पत्र और 65-बी प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया है। इस प्रकार ₹80,000 की कोर्ट फीस स्टैम्प की रसीद प्राथमिक दृष्टया फर्जी प्रतीत होती है।”
समिति ने उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि शिकायतकर्ता ने अपने आरोप सिद्ध कर दिए हैं, और इसी आधार पर वकील के निलंबन एवं मुआवज़े का आदेश पारित किया गया।