इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि किसी कर्मचारी को उसकी आधिकारिक सेवानिवृत्ति तिथि से पहले तब तक सेवानिवृत्त नहीं किया जा सकता जब तक कि उसकी जन्मतिथि मूल सेवा अभिलेखों में पहले से परिवर्तित न हो जाए। यह महत्वपूर्ण निर्णय न्यायमूर्ति अजीत कुमार ने सुरेश यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं 3 अन्य (रिट-ए संख्या-61181/2014) के मामले में सुनाया।
पृष्ठभूमि:
याचिकाकर्ता सुरेश यादव को 1984 में टाउन एरिया कमेटी, दोहरी घाट, मऊ के कार्यालय में दैनिक वेतन के आधार पर चपरासी के रूप में नियुक्त किया गया था। 1992 में उनकी सेवाओं को नियमित कर दिया गया था। हालांकि, जुलाई 1992 में अचानक उनका वेतन रोक दिया गया और सेवाएं समाप्त कर दी गईं। यादव ने इसे अदालत में चुनौती दी और 2006 में अनुकूल निर्णय के बाद उन्हें बहाल कर दिया गया। अगस्त 2014 में, उनकी जन्मतिथि में विसंगतियों के बारे में कुछ शिकायतों के आधार पर, नगर पंचायत, दोहरी घाट मऊ के अध्यक्ष ने जीवन बीमा निगम की पॉलिसी के कागजात के आधार पर उनकी जन्मतिथि 1.1.1964 मानते हुए यादव का वेतन रोकने और उन्हें सेवानिवृत्त करने का आदेश पारित किया। यह बिना किसी औपचारिक जांच या कारण बताओ नोटिस के किया गया था। यादव ने इस आदेश को वर्तमान रिट याचिका में चुनौती दी।
मुख्य कानूनी मुद्दे:
1. क्या किसी कर्मचारी को जन्म तिथि में बदलाव किए बिना सेवा अभिलेखों के अनुसार निर्धारित तिथि से पहले सेवानिवृत्त किया जा सकता है
2. सेवा मामलों में आयु निर्धारण के लिए एलआईसी पॉलिसी का उपयोग करने की वैधता
3. सेवा अभिलेखों में जन्म तिथि बदलने की प्रक्रिया
4. आयु विसंगति शिकायतों पर कार्रवाई करने से पहले उचित जांच की आवश्यकता
न्यायालय की टिप्पणियां और निर्णय:
न्यायमूर्ति अजीत कुमार ने रिट याचिका को स्वीकार करते हुए कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं:
1. सेवा अभिलेखों में बदलाव किए बिना समय से पहले सेवानिवृत्ति पर:
“सेवा पुस्तिका में मूल रूप से दर्ज जन्म तिथि में बदलाव किए बिना किसी कर्मचारी को सेवानिवृत्त नहीं किया जा सकता। सेवा न्यायशास्त्र के पीछे मूल दर्शन यह है कि नियोक्ता और कर्मचारी के बीच रोजगार का अनुबंध होता है। नियोक्ता द्वारा रखी गई सेवा पुस्तिका रोजगार अनुबंध का एक हिस्सा है और इसमें कोई भी बदलाव पहले होना चाहिए क्योंकि यह रोजगार की शर्तों को बदल देगा।”
2. आयु निर्धारण के लिए एलआईसी पॉलिसी का उपयोग करने पर:
“जीवन बीमा निगम पॉलिसी सेवा कानून में आयु निर्धारण के उद्देश्यों के लिए एक दस्तावेज नहीं है।”
3. उचित जांच की आवश्यकता पर:
“जब तक मामले में नियमित जांच नहीं की जाती, तब तक संबंधित कर्मचारी को आरोपों का सामना करने के लिए सुनवाई का अवसर नहीं दिया जाता। मामले का यह पहलू अध्यक्ष/नियोक्ता के ध्यान से लगभग गायब रहा है”
4. अधिकारियों द्वारा मनमानी कार्रवाई पर:
“न्यायालय ने बार-बार माना है कि अधिकारियों द्वारा की जाने वाली कार्रवाई उचित और तर्कसंगत होनी चाहिए, खासकर सेवा मामलों में जहां कर्मचारियों का हित दांव पर लगा हो और इसलिए प्रतिवादी अधिकारियों को मनमाने तरीके से काम नहीं करना चाहिए।”
न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सेवा में भर्ती (जन्म तिथि निर्धारण) नियम, 1974 के नियम 2 और 3 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि जिन कर्मचारियों ने हाई स्कूल पास नहीं किया है, उनके लिए रोजगार के समय दर्ज की गई जन्म तिथि सही मानी जाएगी और बाद में उसे बदला नहीं जा सकता।
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अंतिम आदेश:
न्यायालय ने नगर पंचायत के अध्यक्ष द्वारा पारित 28.8.2014 के आदेश को रद्द कर दिया। इसने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को सेवा में बहाल किया जाए और 31 दिसंबर, 2023 तक सेवा में माना जाए। अदालत ने वेतन का भुगतान और सेवानिवृत्ति बकाया की पुनर्गणना करने का भी आदेश दिया। याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व वकील वी.के. सिंह और डी.के. सिंह ने किया, जबकि सी.एस.सी. दिलीप कुमार श्रीवास्तव और एस. तिवारी प्रतिवादियों की ओर से पेश हुए।