पाकिस्तानी पिता की अभिरक्षा याचिका खारिज: गुजरात हाईकोर्ट ने सांस्कृतिक चिंताओं को हैबियस कॉर्पस के लिए अपर्याप्त आधार माना

गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में दिए गए एक निर्णय में पाकिस्तानी पिता द्वारा अपने नाबालिग पुत्र की अभिरक्षा की याचिका को खारिज कर दिया, जो राष्ट्रीयता और सांस्कृतिक संरक्षण की चिंताओं पर आधारित थी। न्यायालय ने माना कि अवैध कस्टडी या किसी प्रकार की हानि के ठोस साक्ष्य के अभाव में, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान मात्र, हैबियस कॉर्पस राहत को न्यायसंगत ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है। यह फैसला न्यायमूर्ति संगीता के. विशेन और न्यायमूर्ति संजीव जे. ठाकेर द्वारा दिया गया, जो कि “कुतुबुद्दीन इनायत मिठीबोरवाला (अमीर अली असगर के लिए पावर ऑफ अटॉर्नी धारक) बनाम गुजरात राज्य एवं अन्य, विशेष आपराधिक आवेदन संख्या 14406/2024” मामले में हुआ।

पृष्ठभूमि

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याचिकाकर्ता कुतुबुद्दीन इनायत मिठीबोरवाला, पाकिस्तानी नागरिक अमीर अली असगर के पावर ऑफ अटॉर्नी धारक के रूप में, अपने चार वर्षीय पुत्र अज़लान अली असगर की अभिरक्षा प्राप्त करने के लिए हैबियस कॉर्पस याचिका दायर की थी। अज़लान के पिता, अमीर अली असगर ने आरोप लगाया कि बच्चे की माँ (उत्तरदाता संख्या 4) सितंबर 2024 में अपने बेटे को पाकिस्तान से भारत लेकर आईं और उसे अपने पिता और पाकिस्तानी सांस्कृतिक मूल्यों से दूर रखने का इरादा रखती हैं। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उत्तरदाता संख्या 4 का यह कार्य अवैध कस्टडी के समान है और तात्कालिक हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

याचिकाकर्ता के वकील, श्री डी. एम. आहूजा ने तर्क दिया कि उत्तरदाता संख्या 4 का पाकिस्तान लौटने से इंकार बच्चे की सांस्कृतिक पहचान और परवरिश पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। उन्होंने बताया कि स्थायी अभिरक्षा के लिए कराची के फैमिली कोर्ट में एक गार्जियन और वार्ड याचिका दायर की गई है, लेकिन वर्तमान में भारत में रहने वाली माँ को नोटिस देने में कानूनी अड़चनें आ रही हैं। माँ का पर्यटक वीज़ा 6 नवंबर 2024 तक वैध है।

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न्यायालय के कानूनी तर्क और टिप्पणियाँ

न्यायालय ने अपने विचार में मुख्य रूप से इस बात पर ध्यान केंद्रित किया कि क्या सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान के आधार पर हैबियस कॉर्पस याचिका को सही ठहराया जा सकता है। राज्य की ओर से सहायक लोक अभियोजक श्रीमती जिरगा झवेरी ने तर्क दिया कि उत्तरदाता संख्या 4, जो बच्चे की जैविक माँ है, को किसी न्यायिक आदेश के अभाव में कानूनी अभिरक्षा प्राप्त है। झवेरी ने जोर देकर कहा कि हैबियस कॉर्पस केवल स्पष्ट अवैध कस्टडी के मामलों में लागू होती है, जिसका इस मामले में कोई सबूत प्रस्तुत नहीं किया गया।

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न्यायमूर्ति विशेन ने मौखिक आदेश देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने यह साबित करने के लिए कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया कि अज़लान की माँ की देखभाल में उसका कल्याण खतरे में है। न्यायालय ने आगे कहा:

“चार वर्षीय अज़लान अपनी माँ की अभिरक्षा में है और इसलिए यह मानना मुश्किल है कि बच्चे का कल्याण और सर्वोत्तम हित खतरे में है।”

न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि हैबियस कॉर्पस याचिका केवल “राष्ट्रीयता, संस्कृति, और मूल्यों के मात्र आरोपों” पर आधारित नहीं हो सकती और बच्चे का कल्याण सर्वोपरि है, जो माँ के संरक्षण में सुरक्षित प्रतीत होता है।

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पूर्व मामलों का संदर्भ और निर्णय

न्यायमूर्ति विशेन ने सर्वोच्च न्यायालय के राजेश्वरी चंद्रशेखर गणेश बनाम तमिलनाडु राज्य (2022) मामले का उल्लेख किया, जिसमें हैबियस कॉर्पस राहत दी गई थी क्योंकि एक मौजूदा अभिरक्षा आदेश मौजूद था। इसके विपरीत, इस मामले में याचिकाकर्ता के पक्ष में ऐसा कोई आदेश नहीं था, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि “अवैध कस्टडी” का दावा केवल राष्ट्रीयता के आधार पर सही नहीं ठहराया जा सकता।

इन टिप्पणियों के साथ, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि याचिका में हैबियस कॉर्पस राहत को उचित ठहराने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं और इसे खारिज कर दिया।

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